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सद्धममण्डनम् ।
इस पाठ में आये हुए क्षेत्र और अक्षेत्र शब्द का अर्थ टीकाकारने यह किया है“क्षक्षेत्रं धान्याद्युत्पत्ति स्थानम्” अर्थात् 'जिस पृथ्वीमें बोये हुए गेहूं चने व्यादिके बीज अंकुर उत्पन्न करें उसे क्षेत्र समझना चाहिये और इससे जो भिन्न है वह अक्षेत्र है । मेघ पक्ष क्षेत्र और अक्षेत्र से पृथ्वी विशेषका ग्रहण होता है और मनुष्य पक्ष में दान देने योग्य जीव क्षेत्र और दान न देने योग्य अक्षेत्र है । यहां मूलपाठ और टीकामें समान्य रूपसे क्षेत्र और अक्षेत्रका वर्णन है परन्तु यह नहीं कहा है कि एक मात्र साघु ही क्षेत्र है और साधुसे इतर सभी अक्षेत्र हैं। अतः इस पाठका माश्रय लेकर साधुसे इतर सभी जीवों को अक्षेत्र या क्षेत्र कायम करके उनको दान देनेसे एकान्त पाप कहना मिथ्या है । शास्त्र में साधुको दान देनेसे निर्जरा लिखी है और हीन दीन जीवोंको दान देनेसे पुण्यवन्ध कहा है - इस लिये मुख्यमें मोक्षार्थ दानका क्षेत्र साधु है और अनुकम्पा दानके क्षेत्र हीन दीन दुखी प्राणी हैं तथा साधुसे इतर पुरुष मुख्यतामें मोक्षार्थ दानके और हीन दीन दुखियोंसे अतिरिक्त पुरुष अनुकम्पा दानके प्रायः अक्षेत्र हैं। जो पुरुष हीन दीन दुःखी जीवको अनुकम्पा दान देते हैं वे क्षेत्र वर्षी नहीं किन्तु क्षेत्र वर्षी हैं क्योंकि दीन दुःखी व अनुकम्पा दानके क्षेत्र हैं अतः हीन दीन दुःखी प्राणीको अनुकम्पा दान देने वाला पुरुष उक्त चतुर्भङ्गीके प्रथम भङ्गका स्वामी क्षेत्रवर्षी है। जो पुरुष हीन, दीन दुःखीको अनुकम्पा दान नहीं देता और पंच महाव्रतधारी साधुको मोक्षार्थ दान नहीं देता किन्तु जिसको दान देनेकी कुछ आवश्यकता नहीं है अथवा जिसको दान देनेसे
दानके द्वारा हिंसादिक महारम्भका कार्य किया जाता है उसको दान देता है वह दूसरे भङ्गका स्वामी अक्षेत्र वर्षी पुरुष है। जिस पुरुष को यह ज्ञान नहीं है कि अमुक पुरुष दान देने योग्य है और अमुक नहीं है किन्तु पात्र अपात्र सभीको दान देता है वह विवेक विकल पुरुष तृतीय भङ्गका स्वामी उभयवर्षी है । अथवा जो विशाल उदारता के कारण या प्रवचनकी प्रभावनाके लिये सबको दान देता है वह तीसरे भङ्गका स्वामी भवर्षी है। जो क्षेत्र भक्षेत्र किसीको भी कुछ नहीं देता वह परम कृपण अनुभय वर्षी है।
इस चतुर्भङ्गीके तीसरा भङ्गका स्वामी, जो विवेक विकल है उसका दान यद्यपि पूर्ण फलवान नहीं हैं तथापि सर्वथा निष्फल भी नहीं है क्योंकि अपात्र के साथ साथ वह पात्रको भी देता है। जो विशाल उदारताके कारण सबको दान देता है वह भी उदारता रूप गुणके प्रभाव से प्रशंसनीय है और जो प्रवचन प्रभावना के लिये सबको दान देता है वह पुरुष प्रवचन प्रभावना रूप महान् पुण्यका उपार्जन करता है । प्रवचन प्रभावनासे तीर्थङ्कर नाम गोत्र वैधमा ज्ञाता सूत्रके मूल पाठमें कहा है । वह पाठ यह है
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