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सद्धर्ममण्डनम् ।
( इसका भाव यह है कि पारिग्रहिकी क्रिया पञ्चम गुणस्थान तकके जीवों में होती है और उनमें माया प्रत्यया क्रिया भी मौजूद है अतः पारिग्रहिकी क्रियाके साथ माया प्रत्यया क्रियाका नियम कहा है परन्तु माया प्रत्यया क्रिया छठे आदि गुण स्थानों में भी होती है वहां पारिग्रहिकी क्रिया नहीं होती क्योंकि षष्ठादि गुण स्थान वाले जीव परिग्रह रहित होते है इस लिये मायाप्रत्यया क्रियाके साथ पारिग्रहिकी क्रियाकी भजना कही है। )
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( प्रश्न ) हे भगवन् ! जिसको पारिग्रहिकी क्रिया होती है क्या उसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है ?
(उत्तर) हे गोतम ! जिसको पारिग्रहिकी होती है उसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती भी है और नहीं भी होती परन्तु जिसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है। reat पारिप्रहिकी क्रिया अवश्य होती है ।
( इसका भाव यह है कि पारिग्रहिकी क्रिया पञ्चम गुण स्थानमें भी होती है क्योंकि श्रावक भी परिग्रह धारी होते हैं परन्तु उनमें अप्रत्याख्यानिकी क्रिया नहीं होती कारण यह कि श्रावक प्रत्याख्यानी होते हैं अतः पारिग्रहिकी क्रियाके साथ अप्रत्याख्यानिकी क्रियाकी भजना कही है। चतुर्थ गुण स्थान पर्यन्त अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है और वहां परिग्रह भी मौजूद होता है इस लिये अप्रत्याख्यानिकी क्रियाके साथ परिग्रहकी क्रियाका नियम कहा गया है )
( प्रश्न ) हे भगवन् ! जिसको पारिग्रहिकी क्रिया होती है क्या उसको मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती है ?
(उत्तर) हे गोतम ! जिसको पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसको मिथ्या दर्शन प्रत्यया क्रिया होती भी है और नहीं भी होती परन्तु जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है उसको पारिप्रहिकी क्रिया अवश्य होती है ।
( इसका भाव यह है पारिग्रहिकी क्रिया चतुर्थ और पञ्चम गुण स्थानमें भी होती है परन्तु वहां मिथ्या दर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती क्योंकि चतुर्थ और पञ्चम गुणस्थान वाले जीव, सम्यग्दृष्टि होते हैं अतः पारिग्रहिकी क्रियाके साथ मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया की भजना कही गई है । मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया, मिथ्या दृष्टियों में होती है और उनमें परिग्रहकी क्रिया भी मौजूद है इस लिये मिथ्या दर्शन प्रत्यया क्रिया के साथ पारिग्रहिकी क्रियाकी नियमा कही गई है )
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