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सधर्ममण्डनम् ।
( उत्तर )
taar ! frest अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है उसको मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती भी है और नहीं भी होती परन्तु जिसको मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती है उसको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया अवश्य होती है । ( इसका भाव यह है कि चतुर्थ गुण स्थान वाले जीवों में अप्रत्याख्यानिकी क्रिया होती है परन्तु मिथ्याद्दर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती क्योंकि वे सम्यग्दृष्टि हैं इस लिये अप्रत्याख्यानिकी क्रियाके साथ मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रियाकी भजना कही है। मिथ्या दृष्टि जीवोंमें मिथ्या दर्शन प्रत्यया क्रिया होती है और उनमें अप्रत्याख्यानिकी क्रिया भी मौजूद है इस लिये मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया के साथ अप्रत्याख्यानिकी क्रियाका नियम कहा गया है) यह उक्त मूल पाठका टीकानुसार भावार्थ है ।
यहां परिग्रहिक क्रियाके साथ अप्रत्याख्यानिकी क्रियाकी भजना कही गई है यह बात उसी हालत में घट सकती है जब कि किसी जगह परिग्रह तो हो परन्तु अप्रत्याख्यान न हो, ऐसा स्थान, पञ्चम गुण स्थानको छोड़ कर दूसरा नहीं हो सकता क्योंकि षष्ठ आदि गुण स्थानों में परिग्रह नहीं होता और पञ्चमसे पूर्वके गुण स्थानों में परिग्रहके साथ अप्रत्याख्यान भी मौजूद है अतः एक पञ्चम गुण स्थान ही ऐसा है जहां परिग्रह तो होता है परन्तु अप्रत्याख्यान नहीं होता इसलिये उक्त मूल पाठ परिग्रहके साथ अप्रत्याख्यानकी जो भजना कही है उसका पञ्चम गुण स्थान ही उदाहरण समझना चाहिये । यदि भ्रमविध्वंसनकारके सिद्धान्तानुसार श्रावकको भी raat क्रिया लगना माना जाय तो फिर उक्त मूलपाठ में पारिग्रहकी क्रियाके साथ जो अप्रत्याख्यानिकी क्रियाकी भजना कही गई है उसका उदाहरण कौन हो सकता है ? तेरह पंथी इसका कोई भी उदाहरण नहीं दे सकते। जो पुरुष किञ्चित् भी प्रत्याख्यान नहीं करता है उसीको अत्रतकी क्रिया लगना टीकाकारने भी कहा है। वह टीका यह है"अप्रत्याख्यान क्रिया अन्यतरस्याप्यप्रत्याख्यानिनः ।
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अन्यतरदपि नकिंचिदपीत्यर्थः यो न प्रत्याख्याति तस्येत्यर्थः ।"
अर्थात् "जो किञ्चित् भी प्रत्याख्यान नहीं करता उसीको अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगती है" श्रावक तो देशसे प्रत्याख्यान करता है इस लिए उसको अब्रतकी क्रिया नहीं लग सकती तथापि श्रावक के खाने पीने वस्त्र मकान आदिको अनतमें ठहराकर उसको दान देने से जो जीतमलजीने एकान्त पाप और अप्रतका सेवन कराना बतलाया है वह शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिये ।
[ बोल २४ वां समाप्त ]
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