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सद्धर्ममण्डनम् ।
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ९४ पर भगवतीसूत्र शतक १ उद्देशा ८ का मूल पाठ लिखकर कहते हैं कि उक्त पाठमें श्रावकको देश प्रत्याख्यान करनेसे देवता होना कहा है आगारके सेवनसे देवता होना नहीं कहा इसलिये श्रावकका आगार एकांत पापमें है। जैसे कि उन्होंने लिखा है:
'अथ अठे कह्यो जे श्रावक देश थकी निवृत्यो देश थकी न थी निवृत्त्यो देश पञ्च क्खाण कीधो देश पञ्चवखाण की धो न थी। जे देशे करि निबृत्यो अने देश पञ्चक्खाण कीधो तेणे करी देवता हुवे इहां पञ्चक्खाणे करी देतवा थाय कह्यो ते किम जे पच्चक्खाण पालता कष्ट थी पुण्य बंधे तणे करो देवायुष बंधे कयो पिण अव्रत सेव्यां सेवायां देव गतिनो बंध न करो” ।
(भ्र० पृ० ९४ ) इसका क्या उत्तर ? (प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक १ उद्दशा ८ का मूल पाठ लिखकर इसका समाधान किया जाता है वह पाठ यह है:_. “बाल पंडिएणं मणुसे किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ ? गोयमा ! णो रइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ । सेकेण?णं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ ? गोयमा ! पाल पण्डिएणं मणुसे तहा ख्वस्स समणस्स माहणस वा अन्तिए एगमपि आरियं धम्मियं सोचा णिसम्म देसं उवरमइ देसं नो उवरमइ देसं पच्चक्खाइ देसं नो पच्चक्खाइ सेतेण तुणं देसो वरइ देस पच क्खाणेणं नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जई सेतेण?णं जाव देवेसु उववज्जइ।"
(भगवती शतक १ उ०८) - (प्रश्न ) हे भगवन् ! बालपण्डित मनुष्य नरक तिर्यञ्च तथा मनुष्यको आयु बांधकर नरक आदि योनियोंमें जाता है या देवताकी आयु बांधकर देवता होता है।
(उत्तर) हे गोतम ! बाल पण्डित मनुष्य नरकादिकी आयु बांधकर नरक आदि गतिमें नहीं जाता किन्तु देवताको आयु बांधकर देव योनिमें जाता है।
(प्रश्न ) ऐसा क्यों होता है ?
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