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दानाधिकारः।
अर्थात् जो साधु, पर्युषगके पूर्व वर्षा ऋतु में ग्रामानुग्राम विहार करता है या विहार करने वालेको अच्छा जानता है उसे प्रायश्चित्त आता है। जो साधु पर्युषणके अनन्तर वर्षा ऋतु में ग्रामानुग्राम विहार करता है या विहार करने वालेको अच्छा जानता है उसे प्रायश्चित्त आता है।
इस पाठमें वर्षा ऋतुमें प्रामानुप्राम विहार करने वाले और विहार करने वालेका अनुमोदन करने वाले साधुको प्रायश्चित्त आना कहा है इस लिये जो साधु अपने गुरुका दर्शन करनेके लिये भी पावस ऋतुमें ग्रामानुग्राम विहार करता है उसको, और उसको अनुमोदन करने वाले साधुको दोनों ही को प्रायश्वित्त आता है। भ्रमविध्वंसनकारके मतसे जो श्रावक वर्षा ऋतुमें साधुदर्शनार्थ विहार करते हैं और जो साधु उस श्रावकको अच्छा जानते हैं उन दोनोंको उक्त पाठके अनुसार प्रायश्चित्त आना चाहिये। क्योंकि जैसे गृहस्थको दान देने वाले गृहस्थके अनुमोदन करनेसे साधुको प्रायश्चित्त होना भ्रमविध्वंसनकार मानते हैं उसी तरह वर्षा ऋतुमें साधु दर्शनार्थ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले श्रावकको अच्छा जाननेसे भी साधुको प्रायश्चित्त मानना पड़ेगा। क्योंकि दान और विहारके सम्बन्धमें आये हुए पाठोंमें कोई विशेषता नहीं है जिससे इनके अर्थों में विशेपता हो, अतः जैसे गृहस्थको दान देने वाले गृहस्थ को अच्छा जाननेसे भ्रमविध्वंसनकार साधुको प्रायश्चित्त होना बतलाते हैं उसी तरह पावस ऋतुमें साधुदर्शनार्थ प्रामानुग्राम विहार करनेवाले श्रावकको अच्छा जाननेसे भी भ्रमविध्वंसनकारके मतानुयायी साधुओंको प्रायश्चित्त होना चाहिये यदि कहो कि पावस ऋतुमें विहार करनेवाले साधुको अच्छा जाननेसे प्रायश्चित्त बतलाना उक्त पाठका आशय है । साधु दर्शनाथ ग्रामानुप्राम विहार करनेवाले श्रावकको अच्छा जाननेसे प्रायश्चित्त कहनेका अभिप्राय नहीं है तो उसी तरह सरल बुद्धिसे समझो कि गृहस्थको दान देनेवाले साधुको अच्छा जाननेसे प्रायश्चित्त बतलाना निशीथके उस पाठका आशय है गृहस्थको दान देनेवाले गृहस्थको अच्छा जाननेसे प्रायश्चित्त बतलाना नहीं अतः निशीथ सूत्रका नाम लेकर श्रावकको धर्मपालनार्थ दान देनेसे एकान्त पाप कहना नितान्त मिथ्या है।
भ्रमविध्वंसनकारने श्रावकको दिये जाने वाले दानमें एकान्त पाप सिद्ध करनेके लिये जो निशीथ सूत्रका मूल पाठ लिखा है उस पाठकी चूर्णीमें कारण पाकर साक्षात् साधुको भी गृहस्थ दानका विधान किया है वह चूणी मूल पाठके साथ लिखी
जाती है :
___ "जेभिक्खू अण्णउत्थिएणवा गारथिएणवा असणं वा ४ देयह देयन्तं वा साइजइ जेभिक्ख अण्ण उत्थिएण वा गरथिएण वा
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