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सद्धममण्डनम्।
त्तव्वा । जस्त माया वत्तिया किरिया कज्जा तस्स उवरिल्लाओ। दोवि सिय कन्जन्ति सिय नो कजन्ति जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जति तस्स माया वत्तिया नियमा कजति । जस्स अपचक्खाण किरिया कज्जइ तस्स मिच्छदसणवत्तिया किरिया सिय कज्जह सिय नो कज्जइ जस्स पुण मिच्छदसण वत्तिया किरिया कज्जह तस्स अपच्चक्खाण किरिया नियमा कज्जह"
(पन्नावणा सूत्र) अर्थ:
(प्रश्न) हे भगवन जिसको आरम्भिकी क्रिया होती है क्या उसको पारिग्रहिकी क्रिया भी होती है ? और जिसको पारिग्रहिकी क्रिया होती है क्या उसको आरम्भिकी क्रिया भी होती है ?
(उत्तर) हे गतम ! जिसको आरम्भिकी क्रिया होती है उसको पारिग्रहिकी क्रिया होती भी है और नहीं भी होती, परन्तु जिसको पारिग्रहिकी क्रिया होती है उसको आरम्भिकी क्रिया अवश्य होती है।
(जैसे कि प्रमत्त संयत पुरुषको काय आदिके दुष्प्रयोगसे आरम्भिकी क्रिया होती है पारिप्रहिकी नहीं होती क्योंकि वे परिग्रह रहित होते हैं इसलिये आरंभिकी क्रियाके साथ पारिग्रहिकी क्रियाको भजना कही गयी है । छठे गुण स्थानसे नीचेके गुण स्थानवालोंमें परिग्रह भो होता है और आरम्भ भी होता है इसलिए पारिग्रहिकी क्रियाके साथ आरम्भिकी क्रियाका नियम कहा गया है )
(प्रश्न) हे भगवन् ! जिसको आरंभिकी क्रिया होती है क्या उसको माया प्रत्यया क्रिया होती है ? . (उत्तर) हे गोतम ! जिसको आरम्भिकी क्रिया होती है उसको माया प्रत्यया क्रिया अवश्य होती है परन्तु जिसको माया प्रत्यया क्रिया होती है उसको आरम्भिकी क्रिया होती भी है और नहीं भी होती।
(इसका तात्पय्य यह है कि आरंभिकी क्रिया छठे गुण स्थानतकके जीवोंमें होती है और उनमें माया प्रत्यया क्रिया भी होती है इस लिए आरम्भिकी क्रियाके साथ माया प्रत्यया क्रियाका नियम कहा गया है परन्तु मायाप्रत्यया क्रिया सप्तमादि गुणस्थानवालोंमें भी होती है वहां आरम्भिकी क्रिया नहीं होती इसलिए माया प्रत्यया क्रिया के साथ आरंभिकी क्रियाकी भजना कही है।)
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