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दानाधिकारः।
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आदिको अव्रतमें ठहरा कर उसको दान देनेसे एकान्त पाप कहना शास्त्र विरुद्ध है । यदि कोई कहे कि "श्रावकके अन्न, जल, वस्त्र मकान आदि अव्रतमें नहीं तो क्या व्रतमें है ? तो उससे कहना चाहिये कि श्रावकके अन्न वस्त्रादि न तो व्रतमें है और न अघ्रतमें ही, किन्तु परिग्रहमें है । भगवान्ने व्रत और अबतको आत्माका परिणाम बतलाया है और तेरह पन्थके प्रवर्तक भीषणजीने भी प्रत और अव्रतको जीव तथा अरूपी कहा है अतः श्रावकके अन्न वस्त्रादि जो कि रूपी और प्रत्यक्ष अजीव पदार्थ हैं वे व्रत और अप्रतमें नहीं हो सकते भीषण जीने तेरह द्वारमें छठ्ठा रूपी और अरूपी द्वारके अन्दर यह लिखा है "अत्रत आस्रवने अरूपी किग न्याय कही जै अत्याग भाव परिणाम जीवरा अरूपी कह्या छै" अतः श्रावकके अन्न वस्त्र आदिको अब्रतमें कायम करके श्रावकको अघ्रत की क्रिया लगनेकी प्ररूपणा एकान्त मिथ्या है।
____ श्रावकको अनतकी क्रिया नहीं लगना पन्नावणा सूत्रके मूल पाठसे भी सिद्ध होता होता है वह पाठ नीचे लिखा जाता है:
"जस्सणं भन्ते ! जोवस्स आर भिया किरिया कज्जइ तस्स परिग्गहिया किं कजह ? जस्स परिग्गहिया किरिया कजइ तस्स आरंभिया किरिया कज्जइ ! गोयमा ? जस्सणं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तस्स परिग्गहिया सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ जस्स पुण परिग्गहिया किरिया कज्जह तस्स आर भिया किरिया नियमा कज्जइ । जस्सणं भन्ते । जीवस्ल आर भिया किरिया कज्जइ तस्स माया बत्तिया किरिया कजह ? पुच्छा गोयमा ! जस्सणं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जा तस्स माया पत्तिया किरिया नियमा कजइ जस्स पुण माया वत्तिया किरिया कजइ तस्स आरंभिया सिय कज्जइ सिय नो कज्जइ । जस्सणं भन्ते ! जीवस्स आरम्भिया किरिया कज्जइ तस्स अपञ्चक्खाण किरिया पुच्छा ? गोयमा ! जस्सणं जीवस्स आर भिया किरिया कज्जइ तस्स अपञ्चक्खाण किरिया सिय कज्जइ सियनो कज्जई जस्स पुण अपचक्खाण किरिया कज्जइ तस्स आरम्भिया किरिया नियमा। एवं मिच्छादसणवत्तिया एवि समं एवं परिग्गाहियावि तीहिं उवरिल्लाहिं समं संचारे
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