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सद्धममण्डनम्।
कहा है कि कृपण, अनाथ, दरिद्र, दुखी और रोग शोकसे पीड़ित जीव को अनुकम्पा करके जो दान दिया जाता है उसे 'अनुकम्पा' या 'अनुकम्पादान' कहते हैं। दुखी जीव को सहायता देनेका नाम 'संग्रह' है उसके निमित्त जो दान दिया जाता है उसे संग्रह या संग्रहदान कहते हैं । पूज्यपाद उमा स्वातिने कहा है कि अभ्युदय (सुशी) या संकट होने पर सहायताके लिये जो दान दिया जाता है उसे मुनि लोग संग्रहदान कहते हैं यह दान मोक्षके लिये नहीं होता। जो दान भयसे दिया जाता है वह 'भय' या भयदान कहा जाता है। राजा महाराजा कोटवाल आदिको भयके कारण दान देना 'भयदान' है । जो दान करुणा (शोक ) से दिया जाता है वह कारुण्य या कारुण्यदान कहलाता है। पुत्र आदिके मरने पर उस पुत्रको परलोकमें सुखी होनेके भावसे उसके खाट आदिको दान देना कारुण्य-दान' समझना चाहिये। जो दान लजाके कारण दिया जाता है वह लजादान कहलाता है। सभा आदिमें बैठे हुए पुरुषसे कोई वस्तु मांगने पर वह पुरुष लजावश पर।येका चित्त मङ्ग न होनेके लिये जो दान देता है वह लज्जादान कहलाता है। नाचने गाने वाले मल्लयुद्ध करनेवाले और अपने सम्बन्धी वन्धु वान्धव, और मित्र आदिको कीर्ति के लिये जो दान दिया जाता है उसे गौरवदान कहते हैं यह दान गर्दसे दिया जाता है इस लिये इसका गौरवदान नाम रक्खा है। जो दान अधर्मके लिये दिया जाता है वह अधर्मदान कहलाता है । हिंसा झूठ चोरी और परस्त्री सेवन करनेवालों को हिंसा झूठ चोरी और जारीकी सहायता देनेके लिये जो दान दिया जाता है वह 'अधर्मनान' है। धर्मके लिये दान देना धर्मदान है। तृण मणि और मुक्ताको समान समझने वाले सुपात्रको जो दान दिया जाता है वह धर्मदान है यह दान अक्षय अतुल्य और अनन्त होता है। जो दान प्रत्युपकारकी आशासे दिया जाता है उसे 'करिष्यति इति दान' कहते हैं । जो उपकारका बदला चुकानेके लिये उपकारीको दान दिया जाता है वह कृत दान कहलाता है । इसने सैकड़ों मेरे उपकार किये हैं और हजारों बार मुझको दान दिये हैं अतः इसे मैं भी हूँ यह समझ कर जो दान दिया जाता है वह कृतदान समझना चाहिये । यह ऊपर लिखी हुई टीकाका भावार्थ है।
यहां मूलपाठ और टीकामें हिंसा झूठ चोरी और आरीके लिये जो हिंसक चोर जार आदिको दान दिया जाता है उसीको अवमैदान फहा है इससे भिन्न दानों को नहीं इस लिये धर्मदानको छोड़ कर शेष दानोंको अवर्मदानमें बताना मूल पाठ और टीकासे विरुद्ध समझना चाहिये। जो लोग धर्मदानके सिवाय दूसरे दानोंको अधर्म तथा एकांत पापमें बतलाते हैं उनके हिसाबसे उपकारीको उपकारके बदलेमें कृतदान करना अधर्म और एकान्त पाप ठहरता है और उपकारका बदला चुकानेवाला कृतज्ञ पुरुष एकान्त पापी
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