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दानाधिकारः ।
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इसके अनन्तर वह नन्दन मनिहार सोलह रोगोंसे पोडित होकर नन्दा नामक पुष्करिणीमें आसक्त होनेके कारण तिर्य्यञ्च योनिकी आयु बांध कर अतिरुद्र ध्यान ध्याता हुआ काल के अवसरमें मृत्युको प्राप्त होकर नन्दा नामक पुष्करिणीके अन्दर मेढक योनिमें उत्पन्न हुआ ।
यहां नन्दा नामक पुष्करिणीमें आसक्त (गृद्ध ) होनेके कारण नन्दन मनिहारको मेढक योनिमें जन्म लेना लिखा है हीन दीन जीवों पर दया लाकर दान देनेके कारण नहीं । अतः नन्दन मनिहारका नाम लेकर अनुकम्पा दानमें एकान्त पाप कहना मिथ्यावादियों का काम है। कई ऐसा प्रश्न करते हैं कि अनुकम्पा दान देनेमें यदि पुण्य था तो नन्दन मनिहार अनुकम्पा दन देकर मेढक क्यों हुआ ? अनुकम्पा दानका फल उसको क्या मिला था ? उनसे कहना चाहिये कि नन्न मनिहारने श्रावकों के बारह व्रत भी धारण किये थे उसका फल उसको क्या मिला था यह व्याप बतलाइये ? यदि वह कहें कि बारह व्रत धारण करनेका फल नन्दन मनिहारको अच्छा ही मिला होगा परन्तु मूलपाठमें उसका कुछ कथन नहीं है, तो यही उनके प्रश्नका भी उत्तर है अर्थात् अनुकम्पा दान देने का फल नन्दन मनिहारको अच्छा ही मिला होगा परन्तु मूलपाठमें उसका कुछ कथन नहीं है यहां तो नन्दन मनिहार का चरित्र बता कर यह उपदेश किया है कि भव्य rtain सांसारिक पदार्थों में आसक्त न होना चाहिये और भूल कर भी कुसङ्गति में न पड़ना चाहिये क्योंकि नन्दन मनिहार कुसङ्गतिमें पड़ कर वारह व्रतधारी श्रावकसे फिर freeष्टि हो गया था और नन्दा नामक पुष्करिणोमें आसक्त होकर मेढक योनिमें जन्म लिया था । यही नन्दन मनिहारके उपाख्यानका सार है अतः नन्दन मनिहारके उदाहरण से अनुकम्पा दानमें एकांत पाप कहना अज्ञान है ।
कोई कोई कहते हैं कि " नन्दन मनिहार जब तक सम्यग्दृष्टि था तब तक उसने दानशाला आदि परोपकारका कार्य नहीं किया था किन्तु मिथ्यादृष्टि होने पर उसने दानशाला आदि परोपकारके कार्य्य किये थे इसलिये अनुकम्पादान आदि परोपकार के का मिथ्यादृष्टि करते हैं सम्यग्दृष्टि नहीं" वे भोले जीव हैं। राजा प्रदेशी जब तक मिथ्यात्वी था तब तक दानशाला आदि परोपकारका कार्य्य नहीं करता था बल्कि हीन दीन जीवोंकी जोविकाका उच्छेद करता था परन्तु केशीकुमार मुनिके उपदेशसे जब वह बारह व्रतधारी श्रावक हुआ तब वह दानशाला बना कर हीन दीन जीवों को दान देने लग गया था अतः अनुकम्पा दान देना मिथ्यादृष्टियों का ही काय्य नहीं है सम्यग्दृष्टि भी यह कार्य करते हैं इसलिये अनुकम्पादान आदि परोपकारके काय्यैसे जनता को विमुख करना मिथ्यादृष्टियों का कार्य समझना चाहिये ।
( बोल ९ )
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