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सद्धर्ममण्डनम् । पूर्वभवके कार्य वीतरागकी आज्ञामें थे क्योंकि व्यन्तर देवोंके पूर्वभवके काय्यको जैसे भगवान्ने अच्छा कहा है उसी तरह पद्मवर वेदिका वनखण्ड और उनमें देवताओंसे भोगे जाने वाले सुख विशेषको भी अच्छा कहा है । पनवर वेदिका और वनखण्डके लिये यह पाठ आया है:
"पासाइया दमणीया अभिरुवा पडिरूवा" __ अर्थात् पद्मवर वेदिका चित्तको प्रसन्न करने वाली है, देखने योग्य है, अभिरूप है, और प्रतिरूप है। यहां भगवान ने पद्मवर वेदिका और वनखण्ड को भी अच्छा
. इसी तरह व्यन्तर संज्ञक देवताओं के सुख विशेष के सम्बन्ध में यह पाठ माया है:- "कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसे पचणुभवमाणा विहरंति"
अर्थात् व्यन्तर संज्ञकदेव पूर्वभवमें किये हुए कल्याण रूप कर्मोका फलस्वरूप कल्याण रूप फल विशेषका अनुभव करते हैं।
यहां भगवान्ने जैसे व्यन्तर देवोंके पूर्वभवके कार्यको कल्याण कह कर बताया है उसी तरह उनसे भोगे जाते हुए सुख विशेषको भी कल्याणरूप कहा है। अतः जो लोग भगवान द्वारा अच्छा कहे जानेके कारण व्यन्तर देवताओंके पूर्वभवके कार्यको आज्ञामें बताते हैं उन्हें व्यन्तरदेवोंके सुखविशेषको भी आज्ञा ही मान लेना चाहिये तथा पद्मवर वेदिका और वनखण्डको भी उन्हें आज्ञामें ही कहना चाहिये । यदि पद्मवर वेदिका बनखण्ड और वहां देवताओंसे भोगे जाने वाले सुखविशेषको भगवान द्वारा अच्छा कहे जानेपर भी आज्ञामें नहीं मानते तो व्यन्तर देवताओंके पूर्वभवके कार्यको भी आज्ञामें न मानना चाहिये । तथापि इस पाठका उदाहरण देकर व्यन्तर देवताओंके सुख विशेष और पद्मवर वेदिकाको आज्ञामें न मानते हुए भी उनके पूर्वभवके कार्यको आज्ञामें कहना दुराग्रहका परिणाम है।
वास्तवमें आज्ञामें होनेके कारण भगवान ने व्यन्तर देवताओंके पूर्वभवके कार्य, उनके सुख विशेष, और पद्मवर वेदिका तथा वन खंडको अच्छा नहीं कहा है किन्तु वस्तु स्थिति बतलाई है। जैसे रत्नको श्रेष्ठ और कङ्करको निकृष्ट कहा जाता है इसका तात्पर्य यह नहीं है कि रत्न भगवान की आज्ञामें है और कङ्कर आज्ञामें नहीं है उसी तरह जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिके मूलपाठमें वस्तुस्थितिका कथन है वीतरागकी आज्ञामें होनेवाले मोक्षमार्गा
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