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सद्धममण्डनम् ।
इन कुकृत्योंसे निवृत्तिकी शिक्षा देनेवाले माता पिता अधिक हैं ? जहां तक आशा की सभी बुद्धिमा यही कहेंगे कि उक्त बुराइयोंसे निवृत्तिकी शिक्षा देनेवाले माता पिता ही अधिक हैं । सम्भव है कोई कोई माता पिता स्वार्थ या मूर्खतावश अपने पुत्र atra बुराइयों की शिक्षा भी देते हों पर वे विरले होते हैं । उन अपवाद स्वरूप माता पिताकी आज्ञामें यदि पाप होता है तो उनके उदाहरणसे सभी माता पिताओंकी आज्ञामें पाप ही है यह कौनसा न्याय है ? किसी अपवादका आश्रय लेकर उत्सर्गको बुरा कहना कहांकी विद्वत्ता है ?
कभी कभी सूर्यग्रहण होने पर दिनमें ही अन्धकार हो जाता है उसे देख कर यदि कोई सूर्यको अन्धकार फैलानेवाला कहे तो वह मूर्ख है उसी तरह अपवादस्वरूप माता पिताके उदाहरणसे जो सभी माता पिताकी आज्ञा माननेमें पाप बताता है वह भी मू है। कोई कोई ऐसी भी दुष्टा माता सुननेमें आई है जिसने अपने पुत्रका घात कर दिया है, क्या उसके उदाहरगसे सभी माताएं पुत्रघातिनी कही जा सकती हैं ? कदापि नहीं । जब कि पुत्रघातिनी माताके उदाहरण से सभी माताएं पुत्रघातिनी नहीं कहीं जा ana तब कुकृत्यकी शिक्षा देनेवाले पिताके उदाहरण से सभी पिता बुरे कैसे कहे जा सकते हैं ? अतः माता पिताका विनय और सेवा शुश्रूषा करनेमें एकान्त पाप कहना शास्त्रविरुद्ध है।
सूत्रमें माता पिताकी सेवा भक्ति और उनकी आज्ञा पालन करनेसे स्वर्ग आना कहा है वह पाठ यह है
"सेजे इमे गामाग नगर जाव सन्निवेसेसु मणुआ भवंति बगह भद्दमा बगहउवसन्ता पाइपतणुकोह माममायालोभा मिउमद्दव संपन्ना अल्लीणा वीणीया अम्मापिओउ सुस्सुसगा अम्मापत्ताणं अणतिक्कमणिज्ज वयणा अपिच्छा अप्पारम्भा अप्पपरिग्गहा अध्पेणं आरभेणं अपेण आर भसमारंभेण वित्तंकप्पेमाणा बहु बालाइ आउयं पालयंति पालित्ता कालमासे काल किया अनुत्तरेसुवाणमंतरेसु देवत्ताए उववतारो भवंति तंचेव सव्वं नवर ठिति चोदसवास सहरसाई'
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( उवाई सूत्र )
अर्थात् ग्राम नगर आदि सन्निवेशों में रहने वाले जो मनुष्य स्वभावसे भद्रक अर्थात् परोपकारी हैं। स्वभावसे उपशान्त यानी शीतल हैं, स्वभावसे ही क्रोध मान माया और लोभको
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