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सद्धममण्डनम् ।
गजा प्रदेशी भी समकित सहित वारह व्रतधारी था इसलिए वह भी आनन्द श्रावकके समान ही अभिग्रहधारी था तथापि उसने जो दानशाला खोल कर हीन दीन जीवोंको अनुकम्पा दान दिया था इससे अन्यतीर्थीको अनुकम्पा दान देना श्रावकोंका कर्तव्य सिद्ध होता है। राजा प्रदेशीने हीन दीन जीवोंको अनुकम्पा दान दिया था यह मूल पाठ लिख कर बताया जाता है।
"तएणं पएसो राया केसोकुमार समणं एवं वयासी नो स्वलु भन्ते ! अहं पुब्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि। जहासे वनखंडेइवा जाव खलवाडेइवा। अहणं सेयंवियाप्पमोक्खाइ सत्तग्गाम सहस्साई चत्तारिभागे करिस्सामि । एगे भागे वल वाहणस्स दलइस्सामि एगे भागे कोट्ठागारे दलइस्सामि एगे भागे अन्तेउरस्स दलइस्सामि एगेणं भागेणं महइमहालिय कूडागारसाल करिस्सामि । तत्थणं वहुहिं पुरिसेहिं दिण्णभत्तिभत्तवेयजेहिं विउल असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता पहुणं समणमाहणभिक्खुयाणं पंथियपहियाणय परिभोय माणे वहुहिं सोल पञ्चक्खाण पोसहोववासेहिं जाव विहरिस्सामित्ति कटु जामेव दिसं पाउन्भुए तामेव दिसं पडिगए। ततेणं पएसी राया कल्ल पाओ जाव तेजसा जलन्ते सेयंवियाप्पमोक्खाइ मत्तग्गाम सहस्साई चत्तारि भाए करेति । एगं भाग वलवाहणस्स दलयति जाव कूडागार सालं करेति तत्थ वहुहिं पुरुसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता वहुर्ण समण माहणाणं जाव परिभोएमाणे विहरति"
. (राजप्रश्नीय सूत्र ) अर्थः
इसके अनन्तर राजा प्रदेशीने केशीकुमार श्रमण मुनिसे कहा कि हे मुने ! पहले रमणीय होकर पश्चात् बन खण्ड यावत् खलिहानकी तरह में अरमणीय न बनगा। किन्तु श्वेताम्बिक प्रभृति सात हजार गांवोंको चार भागोंमें बांट कर एक भाग बलवाहनके लिये दूसरा कोष्ठागार के लिए और तीसरा अंतःपुरके लिये दूंगा। शेष चौथे भागसे अति विशाल दानशाला बनाकर उसमें बहुतसे वेतन भोगी पुरुषोंको नौकर रख कर उनके द्वारा चतुर्विध आहार तैयार करा कर श्रमण माहन भिक्षक और राहगीरोंको भोजन कराता हुआ और शील प्रत्याख्यान पोषध
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