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दानाधिकारः।
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सिणायगाणंतु दुवे सहस्से जे भोयए णियए कुलालयाणं । से गच्छह लोलुव संपगाढे तोव्वाभिनावी नरगाभिसेवो । दयावरं धम्म दुगुच्छमाणा वहावह धम्म पसंसमाणा। एगंविजेभोयह असील णिवो णिसंजाति कुओ सुरेहिं ।"
(सयगडांग सूत्र श्रुत० २ अ० ६ गाथा ४३-२४-१५) अर्थ
पशुयागके समर्थक कर्मकाण्डी ब्राह्मण आर्द्र कुमार मुनिके पास आकर कहने लगे है आर्द्र कुमार ! तुमने गोशालक और बौद्ध मतको स्वीकार नहीं किया यह अच्छा किया है क्योंकि ये दोनों ही मत वेद वाह्य होनेके कारण अमान्य हैं और यह अहत मत भी वेद पाह्य होनेसे निन्दित ही है अतः आप जैसे क्षत्रिय शिरमणिके लिए इसका आश्रय लेना भी अयुक्त है। आप सब वर्णो से श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी सेवा करें शूद्रोंकी नहीं। वेदमें कहा है कि यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रनिग्रह इन छः कर्मों में तत्पर रहने वाले दो हजार ब्राह्मणोंको जो प्रतिदिन भोजन कराता है वह पुण्य समूहका उपार्जन करके स्वर्गलोक में देवता होता है। ४३
__ इसका उत्तर देते हुए आर्द्र कुमार मुनिने कहा कि हे ब्राह्मणो ! जो मांसकी तलासमें विडालकी तरह घा घर फिरते हैं, जो अपनी उदर पूर्तिके लिए क्षत्रिय आदिके घरों में नीच वृत्ति करते हैं ऐसे दो हजार ब्राह्मणोंको नित्य भोजन कराने वाला पुरुष उन मांसाहारी ब्राह्मणोंके साथ तीव्र वेदना युक्त नरकमें जाता है। ४४
जो, दया प्रधान धर्मकी निन्दा करता हुआ हिंसामय धर्मको प्रशंसा करता है ऐसे एक ब्राह्मणको भोजन करानेसे भी घोर अन्धकारसे पूर्ण नरककी प्राप्ति होती है फिर दो. हजार ऐसे ब्राह्मगोंको भोजन करानेसे तो कहना ही क्या है । पूर्वोक्त कुशील ब्राह्मणोंको भोजन करानेसे जब कि अधम देवता भी नहीं होता तब उत्तम देव होनेकी तो बात ही क्या है। ४५
यह ऊपर लिखी हुई गाथाओंका टीकानुसार अर्थ है। ___ इन गाथाओंमें दया धर्मको निन्दा और हिंसामय धर्मको प्रशंसा करने वाले वैडाल बतिक नीच वृत्ति वाले ब्राह्म गोंको पूज्य बुद्धिसे दान करनेसे नरक जाना कहा है, होन दीन दुःखी जीवोंपर दया लाकर अनुकम्पा दान देनेसे नहीं अतः इन गाथाओं की साक्षी देकर अनुकम्पा दानका निषेध करना एकान्त मिथ्या है। इन गाथाओंमें अनुकम्पा दानका कोई प्रसंग नहीं है यहां तो ब्राह्म गोंने जैन धमकी निन्दा करके ब्राह्मण भोजन करानेसे स्वर्ग जाना कहा था इसका उत्तर देते हुए आर्द्र कुमार मुनिने बैडालबातिक हिंसक नीच वृत्ति वाले ब्राह्मगको भोजन करानेसे नरक जाना कहा इससे न तो अनुकम्पा दानका खण्डन होता है और न दयावान् अहिंसक ब्रह्मचारी ब्राह्मणको
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