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सद्धर्ममण्डनम् ।
सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों ही एक सम्यग्दर्शन, या एक मिथ्यादर्शन रूप तालावसे जल भरे यह कदापि सम्भव नहीं है अतः तालाव के सम्बन्धमें समान विचार रखनेवाले भी और ब्रह्म का उदाहरण देकर भिन्न भिन्न विचारवाले सम्यग्दृष्टि और मिथ्याafgate तालाव से पानी लेने वाला बताना अज्ञानमूलक है ।
ङ्गी और ब्राह्मग घडेका उदाहरण देकर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके क्षमा दया आदिमें तुल्यता बताना भी अयुक्त है । भङ्गी और ब्राह्मणके घडोंमें माधुर्य गुणकी दृष्टिसे कुछ विशेषता नहीं है । ब्राह्मगका घट जैसे मधुर मिट्टीका बना होता है उसी तरह भाभी होता है इसीलिये इन दोनों घडोंमें रक्खा हुआ मधुर जल मधुर ही रहता है परन्तु सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टियोंमें यह बात नहीं है इनके गुण परस्पर विपरीत होते हैं । मिथ्याष्ट्रिका गुण मिथ्यात्व और सम्यग्दृष्टिका सम्यक्त्व होता है । ये सम्यक्त्व और मिथ्यात्व एक दूसरेसे विपरीत होते हैं अतः सम्यग्दृष्टिको मधुर मिट्टीके घड़े का दृष्टान्त और मिथ्यादृष्टिको खारे घडेका दृष्टान्त ठीक घटता है ब्राह्मण और भङ्गीके घडेका नहीं । तात्पर्य यह कि जैसे खारे घडेमें रक्खा हुआ जल खारा और मधुर घटमें
हुआ मीठा होता है उसी तरह सम्यग्दृष्टिके शील, दया, और तपस्या आदि गुण सम्यप और और मिथ्यादृष्टिके ये सब असम्यम् प हो जाते हैं अतः इन दोनों को एक समान कह कर मिध्यादृष्टिके मिथ्यात्वयुक्त शील दया और तपस्या आदिको वीतरागकी आज्ञा में बताना शास्त्रविरुद्ध है ।
नंदी सूत्र टीका में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके लिये सुगन्ध और दुर्गन्ध घट की उपमा दी है ब्राह्मण और भङ्गीके घटकी नहीं । वह टीका यह है
“भाविताः द्विविधाः प्रशस्तद्रव्यभाविता अप्रशस्तद्रव्यभाविताश्च । तत्र ये कर्पू रागुरुचन्दनादिभिःप्रशस्तैर्द्रव्यैर्भावितास्तेप्रशस्तद्रव्यभाविताः ये पुन: पालाण्डु लशुन सुगतैलादिभिर्भावितास्ते प्रशस्तद्रव्यभाविताः”
अर्थात् वासित घट दो प्रकारके होते है एक प्रशस्त द्रव्योंसे वासे हुए और दूसरे अप्रशस्त द्रव्यों से वासे हुए। जो कपूर अगर और चन्दन आदि उत्तम द्रव्योंसे वासे हुए हैं वे "प्रशस्तद्रव्यभावित" कहलाते हैं और जो प्याज, लशुन, मद्य तथा तेल आदि अप्रशस्त द्रव्योंसे वासे गये हैं वे "अप्रशस्तद्रव्य वासित" हैं ।
जिस पुरुषका अन्तःकरण जिनाज्ञाराधक मुनियोंके उपदेशसे वैराग्ययुक्त और निर्मल होता है वह पुरुष प्रशस्तद्रव्यवासित घटके समान है और जिसका अन्त:करण जिनाज्ञा विरोधियोंके उपदेशसे कलुषित है वह अप्रशस्तद्रव्यवासित घटके सहै।
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