________________
. सद्धममण्डनम् ।
क्रिया साधुकी आज्ञामें नहीं हो सकती। अतः मिथ्यादृष्टिकी असम्यग्रूप क्रियाको साधु की आज्ञामें बताना अयुक्त है। .. साधु पुरुष हर एक जीवको सम्यक्रिया करनेकी आशा देते हैं उनकी आज्ञानुसार जो सम्यक् क्रियाका अनुष्ठान करता है वह मिथ्यादृष्टि नहीं है सम्यग्दृष्टि है और जो साधुकी आज्ञा लेकर भी सम्यक् क्रियाका अनुष्ठान नहीं करता मिथ्या क्रियाका अनुष्ठान करता है उसकी वह मिथ्याक्रिया साधुकी आज्ञामें नहीं है उस क्रियाके करनेसे वह आज्ञाराधक नहीं हो सकता किन्तु वह मिथ्यादृष्टि है और उसकी वह क्रिया आज्ञा बाहर है। अतः मिथ्यादृष्टिको साधुकी आज्ञाका आराधक कहना मिथ्या है। - जैसे साधु मोक्षमार्गका आराधन करने के लिए दीक्षा देते हैं और दीक्षा देकर सम्यग्ज्ञान पूर्वक क्रिया करने की आज्ञा देते हैं परन्तु दीक्षित पुरुष अभव्य हो और मिथ्यात्वी होनेसे अज्ञान पूर्वक द्रव्य क्रिया करने लग जाय तो उसकी वह क्रिया साधुकी आज्ञ.में नहीं कही जा सकती क्योंकि साधुने ज्ञानपूर्वक भावक्रिया करने की आज्ञा दी थी न कि अज्ञान पूर्वक द्रव्यक्रिया करने की, उसी तरह जो पुरुष साधुसे सम्यक्रिया करने की आज्ञा लेकर अशान पूर्वक द्रव्य क्रिया करता है उसकी वह क्रिया आज्ञामें नहीं है क्योंकि साधु ने अज्ञानपूर्वक द्रव्य क्रिया करने की आज्ञा नहीं दी है वल्कि ज्ञानपूर्वक भाव क्रिया करनेकी आज्ञा दी है इसलिये उसकी वह अज्ञान क्रिया साधुकी आज्ञामें नहीं हो सकती। अतः मिथ्यादृष्टिकी मिथ्यात्व युक्त क्रियाको वीतरागकी आज्ञामें ठहराना मिथ्या है।
(बोल ३२ वां) (प्रेरक)
· भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३६ पर लिखते हैं कि " इहां कयो सूय्य'भना अभियोगिया देवता भगवान्ने वन्दन नमस्कार कियो तिवारे. भगवान् वोल्या एवन्वनरूप तुम्हारो पुरागो आचार छ। ए तुम्हारो जित आचार छै ए वन्दनारी म्हारी
आज्ञा छ । तो तिमकरणीने आज्ञा बाहिरे किम कहिए." (भ्र० पृ० ३६) . . ... . . इसका क्या उत्तर ?
.(प्ररूपक) .: सूर्याभ देवताके अभियोगिया देवताका उदाहरण देकर मिथ्याष्ट्रिकी क्रियाको .. वीतरागकी आशामें कायम करना अज्ञान है । सूर्याभदेवके अभियोगिया देवताके मिथ्या · दृष्टि होनेमें कोई प्रमाण नहीं है। नरकयोनिके जीव भी. जब सम्यग्दृष्टि होते हैं तब
www.umaragyanbhandar.com
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat