________________
मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
___ यहां नन्दी सूत्रकी टीकामें मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियोंके गुणमें भेद होनेसे उनकी उपमा सुगन्ध और दुर्गन्ध घटको दीहै ब्राह्मग और भङ्गीके घडेकी नहीं अत: जिनके माधुर्य गुणमें कुछ भेद नहीं है ऐसे ब्राह्मग और भङ्गीके घडोंका दृष्टांत देकर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टिके गुणोंको तुल्य बताना एकान्त मिथ्या है।
बोल ३१ वां भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३५ के ऊपर लिखते हैं
“जे मिथ्यादृष्टि साधुने पूछे हूं सुपात्र दान देवू शील पालू वेला तेलादि तप करू जब साधु तेहने आज्ञा देवे कि नहीं ? जो आज्ञा देवे तो ते करणी आज्ञा मांहि थई" (६० पृ० ३५)
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
तप, शील, सुपात्र दानको अच्छा जान कर उनका आचरण करनेके लिए साधुसे आज्ञा मांगने वाला पुरुष मिथ्यदृष्टि केसे कहा जा सकता है ? साधुके पास श्रद्वाभक्तिके साथ जाकर शील तप, सुपात्र दान आदिकी आज्ञा मांगना सम्यग्दृष्टिका लक्षण है यह बात सम्यग्दृष्टियोंमें ही पायी जाती है सम्यग्दृष्टि पुरुष ही साधुके पास भक्ति भावके साथ जाकर शील तप आदि धर्मो की आज्ञा मांगते हैं मिथ्यादृष्टि नहीं, क्योंकि वे साधुको साधु तथा उनके उपदेश किये हुए धर्मको धर्म नहीं मानते । ऐसी दशामें वे भक्ति भावके साथ साधुके पास जाकर शील तप दया आदि धर्मोकी आज्ञा मांग ही नहीं सकते यह भव्य जीवोंको स्वयं सोच लेना चाहिए।
जो पुरुष साधुके निकट जाकर शील तप और सुपात्र दानकी आज्ञा मांगता है उसे उस समय सम्यग्दृष्टि ही मानना चाहिए क्योंकि उपशमसम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी होती है इसलिए उस समय उस पुरुषको भावसम्यक्त्वकी प्राप्ति हुई समझनी चाहिए। अतः साधुके पास जाकर शील तप आदिकी आज्ञा मांगने वालेको मिथ्यादृष्टि ठहराकर मिथ्यादृष्टिकी मिथ्यात्वयुक्त क्रियाको आज्ञामें बताना एकान्त मिथ्या है।
इसके अतिरिक्त यहां यह प्रश्न होता कि जो मिथ्यादृष्टि शील तप आदिकी आज्ञा मांग कर उसका अनुष्ठान करता है उसकी वह क्रिया सम्यग्रूप है या असम्यग्रूप है ? यदि सम्यग्रूप मानो तोसम्यक्क्रियाका अनुष्ठान करनेवाला मिथ्यादृष्टि कैसे ? वह सम्यक्रियाका अनुष्ठान करता है इसलिए मिथ्यादृष्टि नहीं है यदि उसकी क्रियाको असम्यअप कहो तो साधुने उसे असम्यक् क्रिया करने की आज्ञा नहीं दी है इसलिये उसकी वह
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com