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सद्धर्ममण्डनम् ।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
गोशालक मतानुसारिणी जिव्हेन्द्रिय प्रतिसंलीनता और वीतरागमतमान्य जिव्हेंन्द्रिय प्रतिसंलीनता एक नहीं हैं भिन्न भिन्न हैं क्योंकि उवाई सूत्रके सत्रहवें बोल में गोशालक मतानुसारी तपस्वियोंको परलोकका अनाराधक कहा है। यदि गोशालक मतानुसारिणी जिव्हेन्द्रिय प्रतिसंलीनता जिनोक्त प्रतिसंलीनतासे भिन्न न होती तो गोशालक मतानुसारी तपस्वियोंको परलोकका अनाराधक कैसे कहते ? इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि गोशालक मतानुसारिणी जिव्हेन्द्रिय प्रतिसंलीनता अन्य है और वीतराग मतोक्त जिव्हेन्द्रिय प्रतिसंलीनता अन्य है। अतः पूर्वोक्त दोनों प्रतिसंलीनताओंको एक ठहरा कर मिथ्यादृष्टिकी क्रियाको जिनाज्ञामें बताना मिथ्या है।
उवाई सूत्रका वह पाठ नीचे लिखा जाता है जिसमें गोशालक मतानुयायी तपस्वियोंकी तपस्याका वर्णन करके उन्हें परलोकका अनाराधक कहा है।
___"खेजे इमे गामागर जाव सन्निवेसेसु आजीविका भवंति तंजहा-दुघरंतरिया, तिघरंतरिया, सत्तघरंतरिया, उप्पलवेंटिया, घरसमुदाणिया, विज्जुअन्तरिया, उदियासमणा तेण एयारवेण विहारेणं विहरमाणा बहुई वासाइ परियायं पाउण ति। पाउणिता कालमासे काल किचा उक्कोसेण अच्चुएकप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवन्तितहिं तेसिंगती बावीसं सागरोवमाई ठिती अणाराहगा सेसं तं चेव"
( उवाई सूत्र ) अर्थ
ग्राम, आगर, यावत् सन्निवेशोंमें गोशालक मतानुसारो श्रमग होते हैं उनमें कई, दो घर टालकर तीसरे घरमें, कई तीन घरोंको टालकर चौथे घरमें, कई सात घरोंको टाल कर आठवें घरमें भिक्षा लेते हैं। कई, सिर्फ कमलवृत्तको खाकर रहते हैं, कई, प्रत्येक घरोंमें भिक्षा लेते हैं केवल एक ही घरसे नहीं। कई, विजली चमकनेपर भिक्षा नहीं लेते, कई एक ऊटकी तरह बने हुए मिट्टी के पात्र में रह कर तपस्या करते हैं। ये सभी अपने व्रतको बहुत वर्षातक पालकर कालके अबसरमें मृत्युको प्राप्त होकरउत्कृष्ट बारहवें देवलोक अच्युत कल्पमें उत्पन्न होते हैं। वहीं तक उनकी उत्कृष्ट गति है वाईस सागर पर्य्यन्त उनकी स्थिति है । ये लोग परलोकके आराधक नहीं हैं।
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