________________
सद्धर्ममण्डनम् ।
तप अकाम निर्जरा शुद्ध आज्ञा मांहि छै ते मांटे सरागसंयम संयमासंयमरे भेला कह्या । जो अशुद्ध हुवे तो भेला नकहिता"
(भ्र० पृ० ४२-४३) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशा ९ के मूलपाठके आश्रयसे मिथ्यादृष्टिकी करनीको आज्ञामें बताना मिथ्या है। भगवतीके उस पाठमें सिर्फ देवभव और मनुष्य भवकी प्राप्ति के चार कारण कहे हैं। वे कारण वीतरागकी आज्ञामें हैं या आज्ञाके बाहर हैं यह नहीं बतलाया है इसलिये भगवतीके उस पाठसे अकाम निर्जरा और बाल तपस्याको आज्ञामें ठहराना अप्रामाणिक है। उवाई सूत्रके मूलपाठमें अकाम निर्जरा और बाल तपस्याको आज्ञा बाहर कहा है इसलिये अकाम निर्जरा और बाल तपस्याको आज्ञामें कहना शास्त्र विरुद्ध है । उवाई सुत्रका वह पाठ निम्नलिखित है
“जे हमे जीवा गामागर गयर णिगम रायहाणि खेड कव्वड मडंव दोण मुंह पट्टणासम संवाह सन्निवेसेसु अकाम तण्हाए अकाम छुहाए अकाम वंभर वासेणं अकाम अण्हाणक सीयायव दंसमसक सेअजल्लमल्ल पंक परितावेणं अप्पतरोवा भूजतरोवा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति परिकिलेसित्ता काल मासे कालं किचा अण्णतरेसु वाण मंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति"
(उवाई सूत्र) इस पाठका अर्थ पृष्ठ ( १८ ) पर दे दिया गया है।
इस पाठमें अकाम निर्जराकी करनी करने वालेको जिन आज्ञाका अनाराधक कहा है। यदि अकाम निर्जरा वीतरागकी आज्ञामें होती तो उसके आराधकको परलोक का अनाराधक कैसे कहते ? अतः अकाम निर्जराका आज्ञा बाहर होना स्पष्ट सिद्ध होता है।
इसी जगह उवाई सूत्रमें बाल तपस्या करने वालेको मोक्ष मार्गका अनागधक कहा है वह पाठ अर्थके साथ पृष्ठ (२५-२६) के ऊपर दे दिया गया है। यदि बाल तपस्या जिन आज्ञामें होती तो उक्त पाठमें गंगातट निवासी अज्ञानी तापसोंको परलोकका अनाराधक क्यों कहा जाता ? अतः बाल तपस्या जिन आज्ञामें नहीं है यह स्पष्ट सिद्ध होता है।
उवाई सूत्रमें, प्रकृति भद्रक, विनीत, अमत्सरी पुरुष जो सम्यश्रद्धासे हीन हैं उन्हें परलोकका अनाराधक बतलाया है। वह पाठ भी पहले लिखा जा चुका है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com