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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः। तामली तापसकी प्रव्रज्याको जिन आज्ञामें नहीं मानते तोउसकी अनित्य जागरणाको भी आज्ञामें नहीं मानना चाहिये ।
उवाई सूत्रमें वानप्रस्थ तापसोंकी प्रव्रज्याके लिये यह पाठ आया है"वदुई वासाई परियायं पाउणंति"
अर्थात् वानप्रस्थ तापस बहुत वर्षों तक अपनी प्रव्रज्याका पालन करते हैं। यहां जिस प्रकार वानप्रस्थ तापसोंकी प्रव्रज्याका पाठ आया है उसी तरह जिनाज्ञाराधक मुनियोंकी प्रव्रज्याके लिये भी पाठ आया है।
"वहुई वोसाइं केवल परियोग पाउणंति"
वहुई वासाई छउमत्थं परियागं पाउणंति" इन पाठोंमें मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियोंकी प्रव्रज्याके लिये समान पाठ आने पर भी जैसे इनकी प्रव्रज्याए एक नहीं किन्तु भिन्न भिन्न हैं उसी तरह सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि की अनित्य जागरणाएं भी भिन्न भिन्न हैं एक नहीं। अतः तामली और सोमिलकी अनित्य जागरणाको भगवान महावीर स्वामीकी अनित्य जागरणाके तुल्य बताना मिथ्या है।
[बोल ३५ वां समाप्त (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ४२ के ऊपर भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशा ९ का मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं कि
"अथ इहां चार प्रकारे मनुष्यनो आयुषो बंधे कह्यो । जे प्रकृति भद्रिक, विनीत, दयावान् अमत्सर भाव एचार करणी शुद्ध छै आज्ञा मांहि छै तो दयादिक परिणाम साम्प्रत आज्ञामें छै" इसके आगे लिखते हैं--
"बली सरागसंयम संयमासंयम ते श्रावक पणो, वाल तप, अकाम निर्जरा ए चार कारणे करी देव आयुषो बंधे इम कह्यो तो ए चार कारण शुद्ध छै के अशुद्ध छ । सावध छै के निखद्यछ। आज्ञामें छै के आज्ञा वाहिरे छै । एतो चार करणी शुद्ध आज्ञा मांहि लीसू देव आयुषो बंधे छै। अने जे बाल तप अकाम निर्जराने आज्ञा बाहिरे कहे तेहने लेखे सरागसंयम संयमासंयम पिण आज्ञा बाहिरे कहिणा। अने सराग संयम संयमासंयमने आज्ञामें कहे तो बाल तप अकाम निर्जराने पिण आज्ञामें कहिणा । ए बाल
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