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सद्धममण्डनम् ।
कि “उक्त तपस्या करने वाला मिथ्यादृष्टि जिनोक्त धर्मका आचरण करनेवाले पुरुषके सोलहवें अंशमें भी नहीं है।" क्योंकि जो पुरुष जिनोक्त धर्मका आचरण न करके किसी अन्यके धर्मका आचरण करता है उसीके लिये यह कहा जा सकता है कि “यह जिनोक्त धर्मका आचरण करनेवालेके सोलहवें अंशमें भी नहीं है” परन्तु जो जिनोक्त धर्मका ही आचरण करता है उसके लिये ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि वह तो स्वयमेव जिनोक्त धर्मका ही आचरण करने वाला है। अत: इस गाथामें कही हुई मिथ्यात्वीकी तपस्या वीतरागकी आज्ञामें नहीं है और उसके आज्ञामें न होनेसे उसका आचरण करनेवाला गाथोक्त बाल तपस्वी भी जिनोक्त धर्मका आचरण करनेवाला नहीं है। अतएव उसे जिनोक्त धर्मका आचरण करनेवाले पुरुषके सोलवें अंशमें भी न होना कहा है। इसलिए इस गाथासे मिथ्यादृष्टिकी तपस्या स्पष्ट रूपसे जिन आज्ञा बाहर सिद्ध होती है । टीकाकारने भी गाथोक्त वाल तपस्वीकी तपस्याको जिन आज्ञासे बाहर बतलाया है वह टीका यह है
“घोरस्यापि स्वाख्यातधर्मस्यैव धर्मार्थिनाऽनुष्ठेयत्वादन्यस्यत्वात्मविघातादिव दन्यथात्वात् " अर्थात् जो धर्म जिन भाषित है वह यदि घोर ( कठिन ) हो तो भी धर्मकामी पुरुषोंसे आचरण करने योग्य है परन्तु जो घोर-धर्म जिन भाषित नहीं है वह आत्मघातादिकी तरह आचरण करने योग्य नहीं है । यह इस ठीकाका अर्थ है।
इसका तात्पर्य यह है कि गाथोक्त बालतपस्वीकी मास क्षमण तपस्या यद्यपि घोर है तथापि जिन भाषित न होनेके कारण धर्मार्थी पुरुषोंसे आचरण करने योग्य नहीं है। यदि गाथोक्त बाल तपस्वीकी तपस्या जिन भाषित धर्ममें होती तो उसे टीकाकार जिन भाषित न होना क्यों कहते ? इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि गाथोक्त बाल तपस्वीकी मासक्षमण तपस्या जिन आज्ञामें नहीं है इसी लिये उसे टीकाकारने अनाचरणीय कहा है
और मूलगाथामे उसे जिनभाषित धर्मके सोलहवें अंशमें भी न होना बतलाया है। तथापि भ्रमविध्वंसनकारने गाथोक्तवालतपस्वीकी मिथ्यात्व युक्त तपस्याको वीतरागकी आज्ञामें होना बतलाया है यह प्रत्यक्ष उक्तगाथा और उसकी टीकासे विरुद्ध है। यद्यपि अपनी बातको सत्य और शास्त्रानुकूल सिद्ध करनेके लिये भ्रमविध्वंसनकारने यहां यह कल्पना की है कि “ मिथ्यादृष्टिमें संवर नहीं होता इसलिए उसे संवर धर्मवाले पुरुषके सोलहवें अंशमें न होना इस गाथामें कहा है" तथापि उनकी यह कल्पना निराधार है इस गाथामें "संवर" का नाम भी नहीं आया है यहां तो “स्वाख्यात धर्म " कहा गया है। स्वाख्यात धर्म वही है जो जिनवरोंसे कहा हुआ है। उस जिनवर भाषित धर्मसे जो अन्य धर्म है, यानी जो जिनोक्त धर्म नहीं है उसे इस गाथामें जिनोक्त धर्मके
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