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सद्धर्ममण्डनम् । बरुगको भी घायल होकर संग्राम भूमिसे बाहर जाते देखा । पश्चात् वह युद्ध भूमिसे बाहर आकर घोड़ोंको जङ्गलमें छोड़ अपने प्रियवालमित्र वरुणके समान कपड़ेके सन्यारेपर बैठ गया। संथारेपर बैठ कर पूर्वाभिमुख हो हाथ जोड़ कर कहने लगा कि-"प्रियवाल मित्र वरुगनाग नत्तू याके समान मेरे भी शील, प्रत, गुग, विरमग, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि सत्कर्म हों।" यह कह कर उसने अपने सन्नाहको निकाला । पश्चात् अङ्गमें चुभे हुए बाणको निकालकर मृत्युको प्राप्त हुआ। (यह पहले पाठका अर्थ है।)
इसमें वरुगनागनत्तू याके प्रियवाल मित्रका सामान्य रूपसे बारह व्रतधारण करना कहा है। इस पाठमें जो शील, व्रत, गुग और विरमग शब्द आये हैं इनका अर्थ टीकाकारने इस प्रकार किया है
"वयाई" त्ति अहिंसादीनि गुगाईत्ति गुगव्रतानि 'वेरमणाइ'त्ति सामान्येन रागादि विरतयः । “पञ्चक्खाग पोसहो वासाई "त्ति प्रत्याख्यानं पौरुष्यादिविषयं पौषधोपवासः पर्व दिनो पवासः"
इसका अर्थ यह है
यहां व्रत, अहिंसा समझनी चाहिए। तथा “गुण" शब्दका अर्थ गुणव्रत और विरमण शब्दका सामान्यतः रागादि निवृत्ति अर्थ जानना चाहिए। एवं प्रत्याख्यान नाम पौरुषी आदि कालतक त्याग करनेका है और पर्वके दिन उपवास करनेका नाम पौषधोपवास है । यह टीकाका अर्थ है ।
यहांटीकाकारने व्रत आदि शब्दोंका अहिंसादि अर्थ किया है। उन व्रतोंको वरुण नागनतू याके प्रियवाल मित्रसे ग्रहण किया जाना ऊपर लिखे हुए मूलपाठमें लिखा है इस प्रकार वरुणनागनत याके प्रियालमित्रने सामान्य रूपसे बारह व्रतधारी होकर मनुष्य योनिमें जन्म लिया था यह ऊपर लिखे हुए दूसरे पाठमें कहा है । उस पाठका अर्थ यह है
(प्रश्न) हेभगवन् ! वरुगनाग नत्त याका प्रियवाल मित्र मृत्युको प्राप्त होकर किस योनिमें उत्पन्न हुआ ?
(उत्तर) हे गोतम ! वह मनुष्य लोकमें उत्तमकुलके अन्दर उत्पन्न हुआ। (प्रश्न) अब वह किस योनिमें जन्म लेगा ?
(उत्तर) वह मनुष्य भवसे निकल कर महाविदेह क्षेत्रमें मनुष्य भवको प्राप्त करके सिद्ध होगा यावत् कर्मोका अन्त करेगा।
यह दूसरे पाठका अर्थ है। ___ इसमें, सामान्य रूपसे बारह व्रतधारी वरुणनागनत याके प्रियबालमित्रका मनुष्य भव छोड़ कर फिर मनुष्य भवमें ही जन्म लेना कहा है यह सामान्य व्रतधारी
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