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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
-- (प्रेरक)
सामान्य व्रतधारी श्रावकका वैमानिक देवके सिवाय दूसरा भव पाना शास्त्रीय विधि वादसे तो आपने सिद्ध कर दिया परन्तु कहीं चारितानुवादमें इसका उदाहरण मिलता हो तो उसे भी बतलाइए। (प्ररूपक)
भगवती शतक ७ उद्देशा ९ के मूलपाठमें सामान्य व्रतधारी पुरुषका मनुष्य भव छोड़ कर फिर मनुष्य भवमें जन्म पानेका उदाहरण मिलता है यह बात पाठ लिख कर बतलाई जाती है। वह पाठ यह है
"तएण तस्स नागनत्तूयस्स एगे पियवालययंसए रह मुसलं सङ्गामेमाणे एगेणं पुरिसेण गाढप्पहारीकएसमाणे अत्यामे जाव अधारणिजमोति कटु वरुण नागनत्तूयं रहमुसलाओ सङ्गामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ, पासइत्ता तुरगे निगिह णइ निगिह णइत्ता जहावरुणे जाव तुरए विसज्जेइ, पडसन्थारगं दुरुहइ दुरुहइत्ता पुरत्थाभिमुहे जाव अञ्जलिं कडु एवं वयासी-जाइणं मम पियवाल वयं सस्स वरुणस्त नागनतूयस्स सीलाई वयाई गुणाई वेरमणाई पञ्चक्खाणपोसहोववासाई ताइणं ममंपि भवन्तुत्ति कटु सण्णाह पट्ट परिमुयइ मुयइत्ता सल्लूद्धरण करेइ करेइत्ता आणुपुव्वीए काल गए" - इसके अनन्तर एक और पाठ आया है वह यह है
___ "तस्सणं भन्ते ! नागनत्तयस्स पियवालवयंसए काल मासे कालंकिच्चा कहिं गए कहिं उववन्ने ?
गोयमा ! सुकुले पच्चाजाए । सेणंभन्ते ! तवा ओहितो अणंतर उवहिता कहिंगछिहिंति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अन्तं करेहिंति सेवं भन्ते भन्तेति"
(भगवतीशतक ७ रहे शा ९) इन पाठोंके अर्थ क्रमशः दिये जाते हैं
उस समय वरुणनाग नत्तू याका प्रियबाल मित्र, रथ सुपल नामक संग्राम में युद्ध करता हुआ किसीसे गाढ प्रहारको प्राप्त होकर बहुत शक्तिहीन हो गया। उसी समय अपने बाल मित्र
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