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मिथ्वात्विक्रियाधिकारः।
इस उल्लेखमें अज्ञानीको सदा अपवित्र बताया है । 'सदा' शब्द देनेका तात्पय्य यह है कि अज्ञानी चाहे जब जो क्रियाएं करे पर शानके अभाव होनेसे उसकी सब क्रियायें पवित्रताका कारण नहीं हो सकतीं वरन् अपवित्रताका ही कारण होती हैं।
इन उपनिषद्के वाक्योंमें जैसे मिथ्यादृष्टि अज्ञानीकी परलोक सम्बन्धी क्रियानों को संसारका ही कारण कहा है ठीक उसी तरह सुयगडांगसूत्रकी उपर लिझी हुई अत्यामें भी कहा है अत: उक्त गाथासे मिथ्यादृष्टिकी क्रियाका मोक्ष मार्गमें न होना स्पष्ट प्रथापित होता है तथापि मूढ़मतियोंको बहकानेके लिये जीतमलजीने लिखा है कि "मियास्दीनो ओतलो अशुद्ध पराक्रम छै ते सर्व संसारनो कारण छै । अशुद्ध करणीरो कथन हां कलो अने शुद्ध करणीरो कथन तो इहां चाल्यो न थी" यह एकान्त मिथ्या है। यहां मिथ्यादृष्टि अज्ञानियोंकी परलोक सम्बन्धी तपोदानाध्ययनादिरूप क्रियाओंको अबुद
और संसारका कारण कहा है पर उनके कृषि, गोरक्षा, वाणिज्य, संग्राम कुशील माडि फियाओंका कथन नहीं है। ये क्रियाएं चाहे मिथ्यादृष्टिकी हों या सम्यादृष्टि की हों संसारके लिये ही होती हैं इनसे मोक्षमार्गकी अराधना न होना प्रत्यक्ष सिद्ध है अतः इस गाथामें कृषि, गोरक्षा, वाणिज्य और संग्राम कुशीलादि क्रियाओंका कथन नहीं है अतएव इस गाथाकी टीकामें टीकाकारने लिखा है कि "तेषां वालानां यत्किमपि सपोदानाध्ययन नियमादिषुपराक्रान्त मुद्यमकृतं तदविशुद्ध मविशुद्धिकारि" अर्थात् मज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंका जो तपस्या, दान, अध्ययन और नियम आदिमें उद्योग होता है वह सभी अशुद्धिका ही कारण होता है यह इस टीकाका अर्थ है।
यहां टीकाकारने अज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंका, तपस्या दान अध्ययन आदिमें जो उद्योग है उसको उक्त गाथामें अशुद्ध कहा जाना बतलाया है इसलिये उक्त गाथामें मिथ्या दृष्टियोंकी पारलौकिक क्रियाओंका कथन न मान कर कृषि वाणिज्य संग्राम कुशलादि अशुद्ध क्रियाओंका कथन बतलाना मिथ्या है। इस गाथासे मिथ्यादृष्टियोंकी पारलौकिक क्रिया स्पष्ट रूपसे जिन आज्ञा बाहर और मोक्षमार्गसे पृथक् सिद्ध होती है तथापि उसे मोक्षमार्गमें कायम करना मिथ्यादृष्टियोंका कर्य है।
इस गाथामें मिथ्यादृष्टि अज्ञानीकी जिन क्रियाओंको अशुद्ध और कर्म बन्धका कारण कहा है सम्यग्दृष्टिकी उन्हीं क्रियाओंको इसके आगेकी गाथामें शुद्ध और कर्मक्षयका हेतु कहा है। वह गाथा यह है--
___"जेय बुद्धा महाभागा वीरा सम्मत्त दंसिणो सुद्ध तेसिं पर कतं अफल होइ सव्वसो"
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