________________
४०
सद्धममण्डनम् ।
सम्यग्दृष्टियोंका ही होता है मिथ्यादृष्टिका नहीं। अतः सुमुखगाथापतिके वन्दन नमस्कारको शकडाल पुत्रके वन्दन नमस्कार जैसा बतलाना शास्त्र नही जाननेका फल समझना चाहिये।
[बोल १८ वां समाप्त
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १४ के ऊपर लिखते हैं कि “अथ क्रियावादी मनुष्य तिर्यञ्च रे एक वैमानिक रो बंध को और आयुषो बांधे नहीं इमि कह्यो ते मांटे सुमुख गाथापति, तथा हाथी तथा सुत्रती मनुष्य इहां कह्या तेसर्वने मनुष्यनो आयुषानो बन्ध कह्यो ते भणी ए सम्यग्दृष्टि नहीं ते मांटे मनुष्यनो आयुषो बांध्यो छै सम्यग्दृष्टि हुवे तो वैमानिकरो वन्ध कहता" इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
भगवती सूत्र शतक ३० उद्देशा १ में कहा है कि "क्रियावादी मनुष्य एक वैमानिकके सिवाय दूसरेकी आयु नहीं बांधते" इसका अभिप्राय भ्रमविध्वंसनकारने नहीं समझा है इसीलिये वह मनुष्यका आयुबंध देख कर सुमुख गाथापति और हाथीको मिथ्यादृष्टि कहते हैं। भगवतीके उक्त कथनका आशय यह है कि जो मनुष्य और तिर्यञ्च विशिष्ट क्रियावादी होते हैं और अतिचार रहित निर्मल प्रतका पालन करते हैं वे वैमानिक की ही आयु बांधते हैं परन्तु सामान्य क्रियावादी नहीं। यदि कोई कहे कि भगवतीमें तो सिर्फ क्रियावादी भी लिखा है विशिष्ट क्रियावादी नहीं लिखा है फिर आप विशिष्ट क्रियावादी अर्थ क्यों करते हैं ? तो इसका उत्तर यह है कि दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रके मूलपाठमें महारंभी महापरिग्रही क्रियावादी मनुष्यको उत्तरपथगामी नरकयोनिमें जाना भी कहा है यदि सभी क्रियावादी वैमानिककी ही आयु बांधते तो दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रमें क्रियावादी मनुष्यको नरकयोनिकी आयु बांधना कैसे कहा जाता ? अतः निश्चित होता है कि भगवतीके मूलपाठमें जिस क्रियावादीके लिये एक वैमानिककी ही आयु बांधनेका नियम किया है वह विशिष्ट क्रियावादी है पर सभी क्रियावादी नहीं। दशाश्रुत स्कन्ध सूत्रमें क्रियावादी मनुष्यको नरक योनिमें जाना कहा है वह पाठ यह है
सेकिंतं किरियावाइयावि भवइ ? तंजहा-आहियवाइ आहियपन्ने आहिय दिट्ठी सम्मावादी निइवादी संतिपरलोकवादी अस्थि इहलोके अत्थि परलोके अत्थि माया अत्थि पिया अत्थि अरिहन्ता अत्थि चकवधी अत्थि वलदेवा अत्थि वासुदेवा अत्थि सुक्कडदुक्क
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com