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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
“सम्यक्त्व विना संयमकी शुद्ध क्रिया पालन कर जीव नव प्रवेक स्वर्ग तक गया परन्तु कुछ गरज नहीं सरी मिथ्यात्वी ही रहा ।" इसके आगे भीषगजीने फिर लिखा है कि "नवतत्त्व ओलख्या विना पहरे साधुरो भेष । समझ परे नहीं तेहने भारी हुवे विशेष" इसका अर्थ उक्त श्रावक गुलाब चन्दजीने इस प्रकार किया है कि "नवतत्वको जाने विना कई मनुष्य साधु वेष पहन कर साधु बन जाते हैं लेकिन उनको साधुके आचारकी क्रिया शास्त्र वचनोंकी समझ नहीं पड़ती सिर्फ वेषधारी द्रव्य साधु हैं। रजोहरण चद्दर पात्रादि साधु वेष अनन्तवार ग्रहण किया और गोतम स्वामी जैसी क्रिया मिथ्यात्व पनेमें करके नववेक कल्पातीत तक जीव जा पहुंचा परन्तु कुछ भी मोक्ष फलितार्थ न हुआ।"
इन पद्योंमें भीषणजीने साफ साफ स्वीकार किया है कि सम्यक्त्व पाये विना अज्ञान दशामें चाहे गोतम स्वामी जैसी साधुपनेकी क्रिया भी की जाय पर उससे किंचित् भी प्रयोजन नहीं सिद्ध होता। यदि मिथ्यात्व दशाकी करनी मोक्ष मागमें होती तो भीषण जी उस करणीसे किञ्चित् भी प्रयोजन सिद्ध न होना कैसे कहते ? अतः भीषगजीने इस पद्यमें अकाम निर्जराकी करनीको मोक्ष मार्गमें न होना स्पष्ट स्वीकार किया है । तथा जीतमलजी ने भी आराधनाकी ढालमें अकाम निर्जराकी करनीको मोक्ष मार्गमें न होना स्वीकार किया है। जैसे कि उन्होंने लिखा है___“जे समकित विन हैं। चारित्रनी किरियारे, वार अनंत करी पिण काज न सरियारे” अर्थात् सम्यक्त्व पाये विना मैंने अनन्त वार चारित्रकी क्रिया की थी, पर उससे कुछ भी कार्य नहीं सिद्ध हुआ। इस पद्यमें जीतमलजीने स्पष्ट स्वीकार किया है कि मिथ्यात्व दशाकी करनीसे कार्य नहीं सिद्ध होता। यदि मिथ्यात्व दशामें की जाने वाली अकाम निर्जराकी करनी मोक्ष मार्गके आराधनमें है तब फिर उससे कार्य नहीं सिद्ध होने का क्या कारण है ? इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि मिथ्यात्व दशाकी करनी मोक्ष मार्ग में नहीं है तथापि जान बूझ कर भोले जीवोंमें भ्रम फैलानेके लिये जीतमलजीने भ्रमविध्वंसन में अपनी उक्ति तथा भीषणजीकी उक्ति और शास्त्रसे भी विरुद्ध मिथ्यात्व दशाकी करनी को मोक्ष मार्गमें कह दिया है। अतः तामली तापस और पूरण तापसका उदाहरण देकर संवर रहित निर्जराकी क्रियाको मोक्ष मार्गमें कायम करना मिथ्या समझना चाहिये ।
यदि कोई कहे कि "भीषणजी और जीतमलजीके पूर्वोक्त पद्योंमें "नही सरी गरज लिगार" और "काज न सरियारे” इसका भाव यह नहीं है कि मिथ्यात्व दशाकी क्रियासे मोक्ष मार्गका आराधन नहीं होता किन्तु सम्यक्त्व पाये विना मुक्ति नहीं होती यह आशय है" तो यह भी मिथ्या है उसी भवमें मोक्षकी प्राप्ति तो केवल क्षीणमोह और यथाख्यातचारित्र वालोंको ही होती है उनसे इतरकी. उसी भवमें मुक्ति नहीं
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