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सद्धर्ममण्डनम् ।
(प्रेरक)
संवर रहित निर्जराकी क्रिया मोक्ष मार्गमें नहीं है यह शास्त्रप्रमाणानुसार सिद्ध हुआ पर भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ४ पर लिखते हैं कि “तामली तापस साठ हजार वर्ष ताई बेले बेले तपस्या की धी तेह थी घणा कर्मक्षय किया, पछे सम्यग्दृष्टि पामी मुक्तिगामी एकावतारी थयो। जो ए तपस्या न करतो तो कर्मक्षय न हुन्ता ते कर्मारी निर्जरा विना सम्यग्दृष्टि किम पावतो अने एकावतारी किम हुन्तो वली पूरण तापस बारह हजार वर्ष बेले बेले तपकरी घणा कर्म खपाया चमरेन्द्र थयो सम्यग्दृष्टि पामी एकावतारी थयो इत्यादिक घणां जीव मिथ्यात्वी थकां शुद्ध करणी थकां कर्म खपाया ते करणी शुद्ध छै मोक्ष नो मार्ग छै” इसका क्या समाधान
(प्ररूपक)
संवर रहित निर्जराकी करनीको मोक्ष मार्गमें कायम करनेके लिये तामली तापस और पूरण तापसका उदाहरण देना अयुक्त है क्योंकि तामली तापस और पूरण तापस जब तक अज्ञान दशामें अकाम निर्जराकी करनी करते थे तब तक उन्हें शास्त्रकारने मोक्ष मार्गका आराधक होना नहीं कहा। जब वे ज्ञानवान् सम्यग्दृष्टि हुए हैं तब भगवती शतक ३ उद्देशा १–२ में मोक्ष मार्गके आराधक कहे गये हैं। यदि अकाम निर्जराकी क्रिया मोक्ष मार्गमें होती तो ये लोग सम्यक्त्वकी प्राप्तिसे पहले भी मोक्षमार्गके आराधक कहे जाते परन्तु सम्यक्त्व पानेके पहले ये लोग मोक्ष मार्गके आराधक नहीं कहे गये हैं इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि अज्ञान दशामें की जानेवाली संवर रहित निर्जराकी क्रिया मोक्ष मार्गके आराधनमें नहीं है। तथा उवाई सूत्रके पूर्वोक्त पाठोंमें जो संवर रहित निर्जरा की क्रिया गिनाई गई हैं उन क्रियाओंके अन्दर तामली तापस और पूरण तापसकी क्रिया भी शामिल है। उवाई सूत्रोक्त क्रियाओंका मोक्ष मार्गमें न होना स्पष्ट सिद्ध है इस लिये तामली तापस और पूरण तापसकी अज्ञान क्रियाका मोक्षमार्गमें न होना भी स्पष्ट है। अतः तामली और पूरण तापसकी अज्ञान दशाकी क्रियाओंको मोक्ष मार्गमें कायम करना अज्ञान मूलक है।
दूसरी जगह जीतमलजी और भीषणजीने स्वयं यह स्वीकार किया है कि सम्यक्त्वको पाये विना कैसा ही साधुका आचार पाला जाय पर उससे किंचित् भी मोक्ष मार्ग की आराधना नहीं होती । भीषणजीने "श्रावक धर्म विचार" नामक पुस्तकमें लिखा है कि "समकित विन सुध पालियो अज्ञान पणे आचार नववेक ऊच्यो गयो नहीं सरी गरज लिगार" इसका अर्थ तेरह पन्थी श्रावक गुलाब चन्दजी का किया हुआ इस प्रकार है
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