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सद्धममण्डनम् ।
होती । यदि मुक्ति नहीं होनेसे मिथ्यात्व दशाकी करनी किंचित् भी प्रयोजन नहीं सिद्ध करती तो फिर चतुर्थगुणस्थानसे लेकर ११ वें गुणस्थान तककी क्रियासे भी किंचित् प्रयोजन न सिद्ध होना मामना पड़ेगा क्योंकि इन गुण स्थानोंके जीव भी द्वादशादि गुग स्थानोंमें गये विना मोक्षगामी नहीं होते। यदि कहो कि चतुर्थ गुणस्थानसे लेकर ११ वें गुग स्थान तकके जीवोंकी क्रिया परम्परासे मोक्षका कारण होती है इसलिये उन क्रियाओंसे किंचित भी प्रयोजन सिद्ध न होना नहीं कहा जा सकता तो फिर भ्रमविध्वंसन कारकी श्रद्धानुसार मिथ्यात्व दशाको क्रिया भी परम्परासे मोक्षका कारण होती है इसलिये उससे भी प्रयोजनका न सिद्ध होना नहीं कहना चाहिये । परन्तु भीषणजी और जीतमलजीने उक्त पद्योंमें मिथ्यात्वदशाकी क्रियासे किंचित् भी प्रयोजन सिद्ध न होना कहा है इससे स्पष्ट जाना जाता है कि मिथ्यात्व दशाकी क्रियासे ये लोग भी मोक्ष मार्ग की आराधना नहीं मानते परन्तु अपने शास्त्र विरुद्ध पक्षके आग्रहमें पड़ कर भ्रमविध्वंसन में मिथ्यात्वीकी क्रियाको जीतमलजीने मोक्ष मार्गमें कह दिया है अतः भ्रमविध्वंसन कारकी यह प्ररूपणा मिथ्या समझनी चाहिये।
बोल चौदहवां (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ६ के ऊपर मिथ्यादृष्टिकी क्रियाको मोक्ष मार्गमें कायम करनेके लिये यह लिखते हैं कि-"वली प्रथम गुणठाणारो धगी सुपात्र दान देई परीत संसार करी मनुष्यनो आयुषो बांध्यो सुवाहु कुमारने पा छिले भवे सुमुख गाथा पति इ" इनके कहनेका तात्पर्य यह है कि सुमुख गाथा पतिने मिथ्यात्व दशाकी करनीसे संसार परिमित करके मनुष्यकी आयु बांधी थी, इससे मिथ्यात्व दशाकी क्रिया मोक्ष मार्ग में सिद्ध होती है। यदि मिथ्यात्वीकी क्रिया मोक्ष मार्ग में न होती तो सुमुखगाथा पतिका संसार उससे परिमित कैसे होता ? इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
प्रथम गुणस्थान वाले मिथ्यादृष्टियोंका संसार परिमित नहीं होता क्योंकि संसारका कारण मिथ्यात्व उनमें मौजूद रहता है। जब सम्यग् दर्शनके उदयसे मिथ्यात्व का विनाश होता है तब संसार परिमित होता है परन्तु मिथ्यात्वके रहने पर नहीं होता। कारण के रहने पर कार्यका न होना असम्भव है । अतः मिथ्यादृष्टियोंका संसार परिमित होना जो बतलाता है उसे अज्ञानियोंका शिरोमणि समझना चाहिये।
- सुमुख गाथापति मुनिको दान देते समय सम्यग्दृष्टि था मिथ्यात्वी नहीं था इसी लिए उसका संसार परिमित हुआ। अब प्रश्न यह होता है कि सुमुख गाथापति मुनिको दान देते समय सम्यग्दृष्टिका इसमें क्या प्रमाण ?
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