________________
सद्भर्ममण्डनम् । किन्तु जो पुरुष अपनी बुद्धिके द्वारा पापसे हट गया है उसे भगवतीमें देशाराधक कहा है और जो पापसे नहीं हटा है उवाई सूत्रमें उसे मोक्ष मार्गका अनाराधक कहा है। अतः उवाई सूत्रोक्त मोक्षमार्गके अनाराधक पुरुषको भगवतीका नाम लेकर देशाराधक कहना भ्रमविध्वंसनकारका अज्ञान समझना चाहिए।
देखिए भगवती सूत्रमें देशाराधक पुरुषका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है:
" तत्थणं जेते पठमे पुरिसजाए सेणं पुरिसे सीलवं असुयवं उवरए अविण्णाय धम्मे, एसणं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते।"
अर्थात् इन चार प्रकारके पुरुषों में जो पहले पुरुष हैं, वे शीलवान् और अश्रु तवान् हैं। अर्थात् ये पुरुष पापसे हटे हुए और धर्मके विशिष्ट ज्ञाता नहीं हैं। इन पुरुषोंको मैं मोक्ष मार्गका दशाराधक मानता हूं। यह भगवतीके उक्त पाठका अर्थ है। इसमें कहा है किः
___ “जो पुरुष पापसे हट गया है वह मोक्ष मार्गका देशाराधक है ” परन्तु पापसे नहीं हटे हुए पुरुषको देशाराधक नहीं कहा है। और इस पाठकी टीकामें "उवरतः” इस पदका अर्थ टीकाकारने भी पापसे हटा हुआ ही किया है। वह टीका यह है-"निवृत्तः स्वबुद्ध या पापात् " अर्थात् भगवती सूत्रोक्त आराधक विराधक चतुर्भगीके प्रथम भङ्ग का स्वामी वह है जो अपनी बुद्धिके द्वारा पापसे हट गया है। यही बात खुद भ्रमविध्वंसनकाग्ने भी लिखी है । जैसे कि “पोतानी बुद्धिए पाप थी निवो छै" (भ्रम० पृ०३) इसलिए भगवती सूत्रोक्त चतुर्भङ्गीके प्रथम भङ्गका स्वामी देशाराधक पुरुष पाप से हटा हुआ है परन्तु उवाई सूत्रमें कहा हुआ निर्जराकी करनी करने वाला पुरुष पापसे हटा हुआ नहीं है इसलिए ये दोनों पुरुष भिन्न भिन्न हैं एक नहीं हैं। देखिए उवाई सूत्र के मूल पाठमें अकाम निर्जराकी करनीसे स्वर्ग जानेवाले पुरुषका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है-“जीवेणंभन्ते असंजए अविरए अपडिहय पञ्चक्खाय पावकम्मे ” ( उवाई सूत्र)।
"अथात् जो पुरुष संयम रहित विरतिहीन और भूत कालके पापोंका हनन और भविष्यत्के पापोंका प्रत्याख्यान नहीं करने वाला है" वह पुरुष उवाई सूत्रमें कहा हुआ है। इसलिए उवाई सूत्रमें कहे हुए अनाराधक पुरुषको भगवती सूत्रकी चतुर्भङ्गीके प्रथम भङ्गका नाम लेकर देशाराधक बताना मिथ्या है।
उवाई सूत्रोक्त पुरुष पापसे हटा हुआ नहीं है और भगवती सूत्रोक्त पुरुष पापसे सर्वथा हटा है इसलिये ये दोनों कदापि एक नहीं हो सकते तथापि संवर रहित निर्जराकी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com