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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
न्देह मानना पड़ता है कि संवर रहित निर्जराकी करनी मोक्षमार्गके आराधनमें नहीं है अन्यथा ये तापसादि मोक्ष मार्गके अनाराधक क्यों कहे जाते ? यद्यपि उवाई सूत्रके एक ही पाठ दे देनेसे यह बात सिद्ध हो जाती थी तथापि इतने पाठ यहां इसलिये दिखलाये गये हैं कि इन पाठोंमें सभी अकाम निर्जराकी क्रियायें और सभी अज्ञानी तापस गिना दिये गये हैं। इनसे भिन्न एक भी अकाम निर्जराकी क्रिया, तथा अज्ञानी तापस शेष नहीं रह जाते ।। जब कि सभी अकाम निर्जराकी क्रिया और उनके आराधक सभी अज्ञानी तापस मोक्षमार्गके अनाराधक यहां कह दिये गये हैं तो यह अपने आप ही सिद्ध हो जाता है कि सकामनिर्जराकी क्रिया, और ज्ञानवान् सम्यग्दृष्टि पुरुष ही मोक्षमार्गके आराधक हैं । अतः संवर रहित निर्जराको आज्ञामें कायम करके अज्ञानी मिथ्यात्वीको मोक्षमार्गका आराधक कहना शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिए।
बोल बारहवां। (प्रेरक) ____उवाई सूत्रके पूर्वोक्त मूल पाठोंसे संवर रहित निर्जराकी करनी मोक्षमार्गसे अलग सिद्ध होती है और उस करनीका आचरण करनेवाले मिथ्यादृष्टि अज्ञानी पुरुष भी मोक्ष मार्गके अनाराधक सिद्ध होते हैं तथापि इन पाठोंका तात्पर्य बतलाते हुए भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ट २५ पर लिखते हैं कि-"प्रथम गुणठाणारोधणी शुद्ध करणी करे तेहने उवाईमें तो कह्यो परलोकना आराधक न थी। अने भगवती शतक ८ उद्देशा १० कह्यो ज्ञान बिना जे करणी करे ते देश आराधक छै। एविहूंई पाठरो न्याय मिलावणो सर्वथ की तथा संवर आश्रीतो आराधक नथी अने निर्जरा आश्री तथा देशथकी तो आराधक छ । पिण जावक किञ्चिन्मात्र पिण आराधक नथी एहवो ऊंधी थाप करणी नहीं" इसके पहले लिखा है कि “ जिम भगवती शतक १० उद्देशा १ को पूर्व दिशे "धमत्थिकाए' धर्मास्तिकाय नथी एहवू कह्यो । अने धर्मास्तिकायने देश प्रदेश तो छ । ते पूर्व दिशे धर्मास्तिकायनो ना कह्यो ते तो सर्वथकी धर्मास्तिकाय बर्जी छै। पिण धर्मास्तिकायनो देश वौँ नथी । तिम अकाम शील उपशान्तपणो ए करणीरा धणीने परलोकना आराधक नथी इम कह्या ते पिण सर्वथकी आराधक न थी परं निर्जरा आश्री देशाराधक तो छै ।" (भ्र० पृ० २५) इसका क्या उत्तर(प्ररूपक)
भगवती शतक ८ उद्देशा १० में कही हुई चतुर्भङ्गीमें जिसको मोक्ष मार्गका देशाराधक कहा है उसी पुरुषको उवाई सूत्रमें मोक्ष मार्गका आराधक न होना नहीं कहा है।
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