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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
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मोक्षमार्ग के आराधन में होती तो भगवान् इन पुरुषों को मोक्षमार्ग का आराधक न होना कदापि न कहते । क्योंकि संवर रहित निर्जरा की क्रिया इन पुरुषोंमें पूर्णतया विद्यमान है। अतः संवर रहित तथा अज्ञान ( मिथ्यात्व ) के साथ की जाने वाली निर्जरा की करनी को वीतराग की आज्ञा में मानना उत्सूत्र भाषकों का कार्य समझना चाहिये।
[बोल दशवां समाप्त ( प्ररूपक)
जो गङ्गाजी के तट पर रहते हैं, जो अग्निहोत्री हैं जो वानप्रस्थ हैं जो कन्द मूल फल आदि का आहार करते हैं उनको एक पल्योपम और एक लाख वर्षकी आयु का देवता होना बता का भगवान्ने उन्हें मोक्षमार्ग का आराधक न होना बतलाया है। वह पाठ
"सेजे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति तंजहाहोतिया पोतिया कोतिया जण्णई सडढई, घालई, हुपउठा दंतुक्खलिया उम्मज्जका संमज्जका निमज्जका संपक्खाला दक्षिण कूलका उत्तरकूलका संखधमका कूलधमका मिगलुद्धका हन्थितावसा दिसापेक्खिणो वाकवासिणो अंवुवासिणो विलवासिणो जलवासिणो वेलवासिणो रुखमूलिया अंधुभक्खिणो वायुभविखणो सेवाल भकिखणो मूलाहारा कन्दाहारा तोयाहारा पत्ताहारा पुष्फाहारा बीयाहारा परिसडियकन्दमूलतयपत्तपुष्फफलाहारा जलाभिसेअकठिण कायभूए आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इङ्गालसोल्लियं कडुसोल्लियं कठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा बहुई वासाई परियायं पाउगंति । बहुई वासाई परियायं पाउणित्ता काल मासे काल किच्चा उक्कोसेणं जोइसिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । पलिओपमं वाससयसहस्समन्भहियं ठिई। आराहगा ? णो इणढे
समठे"
(उवाई सूत्र) अर्थः
गंगातटमें निवास करनेवाले वानप्रस्थ तापस जो अग्निहोत्र करते हैं जो वनधारी और पृथ्वीपर सोते हैं जो यज्ञ कराते हैं, जो श्रद्धा रखते हैं, जो भाण्ड ग्रहण किये रहते हैं जो कमण्डलुधारी हैं जो सिर्फ फूल खाकर रहते हैं जो पानीमें एक बार दुब्बी लगाकर निकल जाते हैं जो
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