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सद्धममण्डनम् ।
"सेजे इमे गामागर णयर निगम रायहाणि खेड़ कव्वड़ मड व दोणमुह पट्टणासम संवाह सन्निवेसेसु मणुआभवंति तंजहाद्गविइया दगतइया दगएक्कारसमा गोअमा गोवइया गिहिधम्मा धम्मचिंतका अविरुद्धविरूद्ध वुद्धसावकष्पभिअओ तेसिं मणुआणं णो कप्पइ इमाओ नवरस विगईओ आहारित्तए तंजहा - खीर' दहिं णवणीयं सप्पिं तेल्ल फाणियं महु मज्जं गण्णत्थ एकाए सरसव विगए तेणं मणुआ अपिच्छा तंचेव सव्वं णवर' चउरासीइ वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ॥ ९ ॥
( वाई )
अर्थ
ग्रामसे लेकर यावत् संनिवेशों में रहने वाला जो मनुष्य भात और पानी इन दो ही बस्तु ओंका आहार करता है । जो भात तथा एक और पदार्थ, तीसरा पानी का ही आहार करता है जो, भात आदि छः और सातवां पानी का आहार करता है जो भात आदि दश और एग्यारहवां पानीका आहार करता है जो छोटे बैल को पैर पर गिरने आदि की शिक्षा देकर उससे मनुष्यों को प्रसन्न करके भिक्षावृत्ति करता है, जो गाय के चलने पर चलता है और बैठने पर बैठता है भोजन करने पर भोजन करता है और सोने पर सोता है, जो गृहस्थ धर्मको श्र ेष्ठ जानकर देवता अतिथि आदिका सत्कार तथा दान करता हुआ गृहस्थधर्मका आचरण करता है, जो धर्मशास्त्र को पढ़ता है, जो देवता आदि में परम भक्ति रखता हुआ विनीत है, जो आत्मा आदि पदार्थों को नहीं मानता हुआ अक्रियावादी ( नास्तिक ) है जो, वृद्ध यानी तापस है जो धर्मशास्त्रका श्रवण करने
श्रावक (ब्रह्म) है इन मनुष्योंको रसीले ९ पदार्थ अभक्ष्य होते हैं । वे ये हैं—दूध, दही, नवनीत, घी, तेल, गुड़, मद्य, और मांस । परन्तु एक सर्षपका (सरसों) तेल भक्ष्य होता है, ये सब मनुष्य अल्प आरम्भ और अल्पपरिग्रह, करके चौरासी हजार वर्ष की आयुके देवता होते हैं। और सब पूर्ववत् समझना चाहिये ।
यह इस पाठ का अर्थ है 1
इस पाठ में अन्न जल आदिका नियम रखने वाले धर्मशास्त्र पाठी गोत्रत करने वाले गृहस्थ धर्म के पालक रसवान् नौ पदार्थों का भोजन नहीं करने वाले मनुष्यों को चौरासी हजार वर्ष की आयु के देवता होना कह कर भगवान् ने इन्हें मोक्षमार्ग का आराधक न होना बतलाया है क्योंकि ज्ञान पूर्वक की जाने वाली क्रिया ही मोक्ष देती है परन्तु ये लोग इन क्रियाओंको करते हुए भी अज्ञानी हैं अतः अज्ञान ( मिथ्यात्व ) के कारण इन्हें मोक्षमार्ग का आराधक न होना कहा है। यदि संवर रहित निर्जरा की करनी
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