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सद्धर्ममण्डनम् ।
आश्रय में रहने वाले, विनीत, माता पिता के वाक्यका उल्लङ्घन न करनेवाले माता पिता की सेवा करनेवाले, अल्प इच्छा अल्प आरम्भ समारम्भ से अपनी जीविका चलाने वाले बहुत वर्षों तक अपनी आयु को व्यतीत करते हैं ये काल आने पर मृत्यु को प्राप्त होकर वाण व्यन्तर संज्ञक देवलोक में देवता होते हैं। वहीं पर उनकी गति स्थिति और देवभवकी प्राप्ति होती है।
( प्रश्न ) हे भगवन् ! वहां वे कितने काल तक रहते हैं ? ( उत्तर ) वहां वे चौदह हजार वर्ष तक रहते हैं। ( प्रश्न ) वे परलोक (मोक्षमार्ग ) के आराधक हैं ? ( उत्तर ) नहीं, वे परलोक (मोक्षमार्ग) के आराधक नहीं हैं। यह ऊपर लिखे हुए मूलपाठका अर्थ है।
यहां माता पिता की सेवा शुश्रूषा करनेवाले, स्वभावसे परोपकारी, उपशान्त, क्रोधमान माया और लोभ को न्यून किये हुए अज्ञानी मिथ्यादृष्टिको चौदह हजार वर्ष की आयु के देवता होना बतला कर भगवान्ने इन्हें मोक्षमार्ग का आराधक न होना बतलाया है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि संवर रहित निर्जरा की करनी मोक्षमार्ग में नहीं है। इसीसे इस पाठ में माता पिताकी सेवा करने वाला जो पुरुष चौदह हजार वर्ष की आयु का देवता होता है उसे भगवानने मोक्षमार्गका आराधक न होना कहा है। अन्यथा इसे कदापि मोक्षमार्गका आराधक न होना न कहते क्योंकि इस पुरुषमें संवर रहित निर्जरा की करनी विद्यमान है अतः संवर रहित निर्जरा की करनी को मोक्षमार्गमें कायम करके मिथ्यादृष्टि अज्ञानी को मोक्षमार्गका आराधक कहना इस पाठ से विरुद्ध समझना चाहिये।
(बोल आठवां) ( प्ररूपक)
जो स्त्री अकाम ब्रह्मचर्य पालन करके चौसठ हजार वर्ष की आयु की देवता होती है उसे इसी पाठके नीचे मोक्षमार्गका आराधक न होना बतलाया है। वह पाठ
"सेजाओ इमाओ गामागर गयर णिगम रायहाणि खेड़ कव्वड़ मडव दोणमुह पट्टणासम संवाह संन्निवेसेसु इत्थियाओ भवन्ति तंजहा-अंतो अंतेउरिआओ गयपइआओ मयपइयाओ घालविहवाओ छड्डितल्लिताओ माइरक्खिआओ पियरक्खिआओ ससुरकुलरक्खि आओ पारूढणहमसकेसकक्खरोमाओ ववगयपुष्फ गंधमल्लालङ्काराओ अण्हाणगसेयजल्लमल्लपङ्कपरिताविआओ ववगय
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