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सद्धर्ममण्डनम् ।
अर्थ
ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेड़, कव्वड़, मडव, द्रोणमुख, पट्टणासम, संवाह और संनिवेशों में रहने वाले मनुष्य जो हाथ और पैर में काष्ठ या लोहे के बन्धन से बांधे गये हैं, जो पैर में बेड़ियों द्वारा बांधे गये हैं, जो हाडीवन्धन में पड़े हैं, जो बन्दीगृह में पड़े हैं, तधा जिनके हाथ, पांव, कान, नाक, ओठ, जीभ, मस्तक, मुख और पेट काट लिगे गये हैं, जो चादर की तरह चीर दिये गये हैं, जिनके हृदय, नेत्र, दांत और अण्डकोश उपाड लिये गये हैं, एवं चावलकी तरह जिसका शरीर खण्ड खण्ड कर दिया गया है जिसके शरीर के चीकने चीकने मांस खा लिये गये हैं जो रस्सी से बांध कर गड्ढे आदि में लटका दिये हैं, जिनकी भुजा वृक्ष की शाखा में बांध दी गई है, जो पत्थर आदि पर चन्दन के समान घिसे गये हैं, जो दही की तरह घोल दिये गये हैं, जो कुठार से लकड़ी के समान काट दिये गये हैं, जो यन्त्र के द्वारा ईख की तरह पेरे गये हैं, जो शूली दे दिये गये हैं, जिनका मस्तक फाड़ कर शूल निकल गया है, जो क्षार में डाल दिये गये हैं, या जिस पर क्षार रक्खा गया है, या, जो, क्षार खिलाये गये हैं, जो रस्सीसे बांधे गये हैं, जिनका लिङ्ग काट लिया गया है, जो दावाग्निमें जल गये हैं, जो कीचड़ में फसकर उससे पार जाने में असमर्थ हैं, जो क्षुधा आदि की पीड़ा से मर गये हैं, जो विषय में परतन्त्र होकर मर गये हैं, जो बालतपस्या करके मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, जो मिथ्यात्व आदि शल्य को, तथा पेटमें चुभे हुए भाले आदि को म निकाल कर मर गये हैं, जो पर्वत से गिर कर मर गये हैं, जो वृहत् पाषाण के शरीर पर गिरने से मर गये हैं, जो वृक्ष से गिर कर मर गये हैं, जो निर्जल देश में या निर्जल देशके स्थल विशेष से गिराये हुए मर गये हैं, जो तृण कपास आदि के भार से दब कर मर गये हैं, जो मरने के लिये पर्वत या वृक्ष के एक देशमें कम्पायमान होकर वहां से गिर कर मर गये हैं, जो शस्त्र के बारा अपने शरीर को चीर कर मर गये हैं, जो वृक्ष की शाखा में लटक कर मर गये हैं, जो मरने के लिये हाथी, उंट, गदहे आदि के शरीर के नीचे गिर जाते हैं और गीध आदि पक्षियों से नोच कर खा लिये जाते हैं, जो घोर जङ्गल में दुर्भिक्षसे मर जाते हैं, ये सब मनुष्य यदि असंक्लिष्ठ परिणामी होते हैं तो काल मास में काल करके वाणव्यन्तर संज्ञक देवलोक में देवता होते हैं। वहीं पर उनकी गति स्थिति और देवभव की प्राप्ति होती है।
(प्रश्न ) देवलोक में उनकी स्थिति कितने काल की होती है ? (उत्तर) वहां उनकी बारह हजार वर्ष की स्थिति होती है।
( प्रश्न ) उन देवों की वहां पर पारिवारिक सम्पत्ति, शरीर और भूषणों की दीप्ति, यश बल, वीर्य्य, पुरुषाभिमान, पराक्रम, ये सब होते हैं ?
( उत्तर ) हां होते हैं। (प्रश्न ) वे परोक ( मोक्ष मार्ग ) के आराधक हैं ? ( उत्तर ) नहीं, वे परलोक के आराधक नहीं हैं। यह ऊपर लिखे हुए मूलपाठ का अर्थ है ।
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