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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
इसमें कहा है कि जो मनुष्य असंक्लिष्ट परिणाम से हाडीवन्धनादिक दुःख सह कर बारह हजार वर्ष की आयु के देवता होते हैं वे मोक्ष मागके आराधक नहीं हैं। यदि संवर रहित निर्जरा की करनी मोक्ष मार्गमें होती और उस करनी के करने से मोक्षमार्ग की आराधना होती, तो श्रीतीर्थ करदेव, असंक्लिष्ट परिणाम से हाडीवन्धन आदिका दुःख सहने वाले पुरुषोंको मोक्षमार्ग का आराधक न होना क्यों कहते ? क्योंकि ये पुरुष संवर रहित निर्जरा की करनी विशेष रूपसे करते हैं। परन्तु संवर रहित-निर्जरा, मोक्ष मार्गमें नहीं है इसलिए इन पुरुषोंको भगवान्ने मोक्ष मार्गका आराधक न होना कहा है। अत: संवर रहित निर्जरा की करनीको मोक्षमार्ग के आराधन में कायम करके उस करनी से मिथ्यादृष्टि अज्ञानी को मोक्ष मार्गका आराधक कहना शास्त्र विरुद्ध समझना चाहिये।
बोल ७ वां समाप्त (प्ररूपक )
जो जीव मिथ्यादृष्टि अज्ञानी हैं, परन्तु माता पिता की सेवा शुश्रूषा करके चौदह हजार वर्षकी आयुके देवता होते हैं उनको मोक्षमार्गका आराधक न होना इसी पाठके नीचे कहा गया है वह पाठ- "सेजे इमे गामागर नयर णिमम रायहाणि खेड़ कब्बड़ मडव दोणमुह पट्टणासम संवाह संनिवेसेसु मणुआ भवंति, तंजहा-पगइभद्दगा पगइउपसंता पगइपतणुकोहमाणमायालोहा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा विणीया अम्मापिउ सुस्ससगा अम्मापिईणं अणतिकमणीज्जवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणा वहुई वासाइं आउयं पाल ति पालित्ता कालमासे कालं किचा अण्णतरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिंगती तहिं तेसिं ठिती तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते तेसिंणंभन्ते । देवाणं केवइयं काल ठिती पण्णत्ता गोयमा ? चउद्दसवाससहस्सा"
( उवाई ) अर्थ
ग्रामसे लेकर यावत् संनिवेशों में रहने वाले जो मनुष्य स्वभावसे परोपकारी स्वभाव से उपशान्त स्वभावसे ही क्रोधमान, माया और लोभ को न्यून किये हुए, अहङ्कार रहित, गुरु के
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