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सद्धर्ममण्डनम् ।
(प्रेरक)
: आपने पहले बोलमें ठाणाङ्ग आदि सूत्रोंका प्रमाण देकर धर्मके दो भेद श्रुत और चारित्र बतलाये हैं और मिथ्यादृष्टिमें इन धर्मोके न होनेसे उसे मोक्ष मार्गका किञ्चित् भी आराधक न होना कहा है। परन्तु भ्रमविध्वंसनकार आपकीतरह धर्मका भेद नहीं करते जैसे कि भ्रमविध्वंसनके पहले पृष्ठ पर उन्होंने लिखा है "ते धर्मरा दो भेद सर्वर निर्जरा । ए बीहूं भेदांमे जिन आज्ञा छै । ए संवर निर्जरा बीहुई धर्म छै । ए संवर निर्जरा टाल अनेरो धर्म नहीं छै । कई एक पाखण्डी संवरने धर्मश्रद्ध पिण निर्जराने धर्म श्रद्धे नहीं। त्यारे संवर निर्जरारी ओलखगा नहीं" इसका क्या समाधान-- (प्ररूपक)
.. शास्त्रमें कहीं भी धर्म के दो भेद संवर और निजरा नही कहे हैं। किन्तु ठाणाङ्ग सुत्रके दूसरे ठागेमें श्रुत और चारित्र ये दो धर्मके भेद बताये हैं। वह पाठ पहले बोल में लिखा जा चुकाहै। इसलिए संवर और निर्जराको धर्मका भेद बतलाना अप्रामाणिक है। * शास्त्रकारको यदि यह इष्ट होता तो ठागाङ्ग सुत्रमें जहां यह पाठ आया है कि "दुवि हे धम्मे पनत्ते तंजहा-सुय धम्मे चेव चारित्त धम्मेचेव ।" वहां ऐसा पाठ आता कि "दुविहे धम्मे पन्नत्ते तंजहा संवर धम्मेचेत्र निजरा धम्मे वेव" मगर ऐसा पाठ नहीं आया । इसलिए संवर और निर्जराको धर्मका भेद कायम करना मिथ्या है। भ्रमविध्वंसनकारने मिथ्यादृष्टि की अप्रशस्त निर्जराको वीतरागकी आज्ञाके धर्ममें कायम करनेके लिये अपने मनसे धर्मके दो भेद संवर और निर्जग लिख दिये हैं। परन्तु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है। संवर रहित निर्जरा कहीं भी वीतरागकी आज्ञामें नहीं कही है
और इसका आराधक भी कहीं मोक्ष मार्गका आराधक नहीं कहा है । तथापि यदि संवर रहित निर्जराको धर्ममें मान कर मिथ्या दृष्टिको मोक्ष मार्गका आराधक माना जाय तो कोई भी जीव मोक्ष मार्गका अनाराधक न होगा। क्योंकि संवर रहित अप्रशस्त निर्जरा सभी प्राणियोंमें होती है। ऐसी निर्जरासे २४ ही दण्डकके जीव युक्त हैं, अतः
नोट-संवर और सकाम निर्जरा श्रुत तथा चारित्रके अन्तर्गत हैं अतः ये धर्म हैं पर अकाम निर्जरा धर्म नहीं है। लेकिन धर्मके दो भेद "संवर और निर्जरा" कहनेसे अकाम निर्जरा भी धर्म में ठहरती है और अकामनिर्जरा मिथ्यादृष्टि में भी होती है इसलिए वह भी मोक्षमाग का आराधक कायम होता है परन्तु यह बात शास्त्र सम्मत नहीं है। इसलिए शास्त्रानुसार धर्मके दो भेद श्रुत और चारित्र ही कहने चाहिये। इस प्रकार संवर और सकाम निर्जरा धर्म में कायम होंगे और अकाम निर्जरा न होगी, क्योंकि वह श्रुत तथा चारित्रसे बाहर है और अकाम निर्जरा के धर्मसे पृथक् होनेपर मिथ्यादृष्टि मोक्षमार्गका आराधक न होगा इस प्रकार शास्त्रसे कोई विरोध न आवेगा यही यहांका तात्पर्य है ।
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