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मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
अज्ञानी और मिथ्यात्वियों में नहीं होते सम्यग्दृष्टि पुरुषों में ही होते हैं अत: सम्यग्दृष्टि पुरुष ही वीतराग की आज्ञाराधक या मोक्ष मार्गके आराधक हैं मिथ्यादृष्टि नहीं।
(१) पहला बोल समाप्त । जो जीव अज्ञानी तथा मिथ्यादृष्टि हैं उनसे जो परलोक के लिये तपोदानादि रूप क्रिया की जाती हैं वह वीतराग की आज्ञा में नहीं हैं और वे पुरुष मोक्ष मार्गके किञ्चित् भी आराधक नहीं हैं यह बात शास्त्र के प्रमाण से बतलाई जाती है।
भगवती सूत्र शतक १ उद्दशा ४ में कहा है कि जो पुरुष अज्ञानी तथा मिथ्यादृष्टि हैं उनकी परलोक सम्बन्धी क्रिया मोह कर्म के उदय से होती है। वह पाठ
“जीवेणं भन्ते ! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिन्नेणं उवट्ठावेज्जा ? हंता गोयमा उवट्ठाएज्जा । से भन्ते ! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? गोयमा ! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा णोअवीरियत्ताए उवट्ठाएजा। जइ वीरियत्ताएउवटाएज्जा किं वाल वीरियत्ताए उवहाएजा पण्डियवीरियत्ताए उवहाएज्जा वालपंडियवीरियताए उवट्ठाएज्जा गोयमा ! वालवीरियत्ताए उवटाएज्जा णोपंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएजा णो वालपंडियवीरियताए उवटाएज्जा" (भगवती शतक १ उद्देशा ४) - अर्थ हे भगवन् ! मिथ्यात्व-मोहनीय कर्मके उदयसे जीव परलोककी क्रिया स्वीकार करता है या नहीं ?
(उत्तर) हे गोतम ! करता है। (प्रश्न) हे भगवन् वीर्य्यके द्वारा स्वीकार करता है या अवीर्य्यके द्वारा करता है ?
(उत्तर) वीर्य्यके द्वारा स्वीकार करता है अवीर्य्यके द्वारा नहीं क्योंकि परलोककी क्रिया करनेमें वीर्य्यकी आवश्यकता होती है।
(प्रश्न ) यदि वीर्य्यके द्वारा स्वीकार करता है तो क्या बाल वीर्य्यके द्वारा करता है या पण्डित वीर्य्यके द्वारा करता है अथवा बाल पण्डित वीर्य्यके द्वारा स्वीकार करता है ?
(उत्तर) बाल वीर्य्यके द्वारा स्वीकार करता है पण्डितवीर्य्य अथवा बालपण्डितवीर्य्यके द्वारा नहीं। यह इस पाठका अर्थ है।
यहां “बाल" शब्दका अर्थ टीकाकारने मिथ्यादृष्टि किया है। वह टीका यह है
"बालवीय॑त्ताए” त्ति वालः सम्यगर्थानववोधात् सद्वोधकार्यविरत्यभावाच्च मिथ्यादृष्टिः तस्य वीर्यता परिणति विशेषः सा तथा तया"
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