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समवायानसूत्रे शानेषु कल्पेषु अस्त्येकेषां देवानां नव पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । ब्रह्म लोके कल्पे अस्त्ये केषां देवानां नव सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। ये देवाः पक्ष्मं१ सुपक्ष्म२ पक्ष्मावत्त३ पक्ष्ममभं४ पक्ष्मकान्तं५ पक्ष्मतर्ग६ पक्ष्मवेश्यं७ पक्ष्मध्वजं८ पक्षमसङ्गं९ पक्षमसृष्टं १० पक्ष्मकूटं११ पक्ष्मोत्तरावतंसकं१२ सूर्य१३ सुम्य१४ सूर्यावर्त१५ सूर्यमभं१६ सूर्यकान्तं१७ सूर्यवर्ण१८ मूर्यलेश्य१९ सूर्यध्वजं२० सूर्यशृङ्ग२१ सूर्यसृष्टं २२ मूर्यकूटं२३ सूर्योनरावतंसकं२४ ' रुइल्लं' रुचिरं२५ रुचिरावत २६ रुचिरमभं२७ रुचिरकान्तं२८ रुचिरवर्ण२९ रुचिरलेश्यं३० रुचिरध्वनं३१ रुचिरश्रृंङ्गं३२ रुचिरसृष्टं३३ रुचिरकूटं३४ रुचिरोत्तरावतंसकं३५ च विमानंएतेषु पञ्चत्रिंशद् विमानेषु देवत्वेनोत्पन्ना;, तेषां खलु देवानां नव सागरोपनव पल्योपम की स्थिति कही गई है। सौधर्म ईशानकल्प में कितनेक देवों की नव पल्योपम की स्थिति कही गई है । ब्रह्मलोक कल्प में कितनेक देवों की नव सागरोपम की स्थिति कही गई है। जो देव, पक्ष्म १, सुपक्ष्म २, पक्ष्मावत ३, पक्ष्मप्रभ ४, पक्ष्मकान्त ५, पक्ष्मवर्ण ६, पक्ष्मलेश्य ७, पक्ष्मध्वज ८, पक्ष्मश्रृंग ९, पक्ष्मसृष्ट १०, पक्ष्मकूट ११, पक्ष्मोत्तरावतंसक १२, सूर्य १३, सुसूर्य १४, सूर्यावर्त १५, सूर्यप्रभ १६, सूर्यकान्त १७, सूर्यवर्ण १८, सूर्यलेश्य १९, सूर्यध्वज २०, मूर्यश्रृंग २१, सूर्यसृष्ट २२ सूर्यकूट २३, सूर्योत्तरावतंसक २४, रुचिर २५, रुचिरावर्त २६, रुचिरप्रभ २७, रुचिरकान्त २८, रूचिरवर्ण २९, रुचिरलेश्य ३०, रुचिरध्वज ३१, रुचिरश्रृंग, ३२, रुचिरसृष्ट ३३, रुचिरकूट ३४, और रुचिरोत्तरवतंसक ३५, इन ३५, विमानों में देवकी पर्याय से उत्पन्न होते हैं કલ્પમાં કેટલાક દેવની સ્થિતિ નવ પલ્યોપમની કહેલ છે. બ્રહ્મક ક૫માં કેટલાક દેવેની નવ સાગરોપમની સ્થિતિ કહેલ છે.
२ हेव (१) ५६म, (२) सु५६म, (3) ५६भावत्त, (४) ५६मशन, (५) ५६मान्त, (६) ५६भव, (७) ५३मवेश्य, (८) ५६५०४, (८) ५६मश्र 1, (१०) ५६भसृष्ट, (११) ५६भट, (१२) ५६भात्तरावतसर (13) सूर्यः, (१४) सुसूर्यः, (१५) सूर्यापत्तः, (१६) सूर्य प्रल, (१७) सूर्यान्त, (१८) सूर्य , (१८) सूर्य वेश्य, [२०] सूप, (२१) सूर्य (२२) सूर्य पृष्ट (२३) सूर्यफूट (२४) सूर्योत्तरावतसर, (२५) रुथिर, (२९) रुथिरावत, (२७) २२२प्रम, (२८) यि२४न्त, (२८) रुयि२१। (३०) विश्वेश्य, (३१ रुथि२८५०४ (३२) २थिर, (33) रुथिरसट, (३४) सथिरट અને (૩૫) ચિરોત્તરાવતંસક, એ પાંત્રીસ વિમાનમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થાય છે,
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર