________________
इन महापुरुष ने समाज में भी अच्छी इज्जत प्राप्त की थी, पंच, पंचायती में भी इनकी राय ऊँची मानी जाती थी, ये नीति से व्यापार करते थे, फिर भी वैराग्य इनको बहुत प्रिय था पूज्य श्री लालजी महाराज के पास ब्रह्मचर्य का खंघ किया था युवानवय में सपत्नी नौ वर्ष तक संसारावस्था में अखंड ब्रह्मचर्य पाला था बाद में पूज्य आचार्य श्री जवाहर. लाल जी महाराज के पास वि. सं. १९७८ में दीक्षा ली, प्रथम चौमासा रतलाम में था जिसमें इन्होंने चालीस दीन की तपस्या की थी, दुसरे साल अहमदनगर (दक्षिण) में चौमासा था उसमें इकसठ दिन की तपस्या की, उस मोके पर नगर सेठ दाराबजी ने सारे शहर की जीव दया रक्खी थी, शहर भर के कतलखाने बन्ध रखाये थे यहांतक कि गोरे लोगों की छावनी में भी कतलखाने सेठ साहेब ने बन्धरखवाये थे। दक्षिणबेलापुर में चातुर्मास किया उसमें उगनसठ दिन की तपस्या की वहां भी सारे शहेर में जीवदया पाली तथा मच्छीमारों का कामकाज वगैरह पारणा के ऊपर बन्ध रहा। व्यावर (नयाशहेर) में चौमासे के अन्दर पिचोत्तर उपवास किये, बडा भारी जीवदया का उपकार हुआ, बीकानेर चातुर्मास में बडी तपस्या की, आदर्श धर्मध्यान हुआ, उदयपुर चातुर्मास किया, बडी वहां चौसठ और पीचोतेर दीन की तपस्या की, सारे मेवाड में अगता रहा पाखी पलाई. भूपालसिंह जी महाराणाजी ने जीवदया का डंका बजाया और ओं शान्ति कराइ, राणा जी ने इनके दर्शन किये। गणा जी के दीवान साहेब श्री तेजसिंह जीसा. ने इनके पास समकित ली यानी इनको गुरु बनाया। नव्यासी में गोगुना में ८३-९० मे सेमलगाम मे ९० दिन को तपस्या की कुचेरा (मारवाड) में वि.सं १९९१ में चातुर्मास किया, ९१एकानु दिन की तपस्या की और उस मौके पर कुचेरा में भैरु जी के स्थान की जीवहिंसा सदा के लिये बन्द करवाई। सं. १९९२ में करांची चातुर्मास किया उसमें इन्होंने तीन महिने की तपस्या की लाखों जीवों का उपकार हुआ, दूसरे साल करांची में ही विराजे, छनु दिन की तपस्या की, करांची का कतलखाना चौबीस घंटे के लिये बन्ध रहा। करांची संघने बड़ी सेवा बजाई, सेठ जमसेद जी नसरवान जो महेता पारसी कोम के अग्रेसर जो सोलह सालतक करांची के मेयर थे उन्होंने कतलखाना बन्ध करवाने का बडा प्रयत्न किया
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર