Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्री तपस्वीराज श्री सुंदरलालजी म. सा. का
संक्षिप्त जीवनचरित्र स्वनाम धन्य श्री श्रोसवाल कुलभूषण श्री भैरव दासजी छाजेड ने दत्तवाम ग्राम (जयपुर) राजस्थान में है अपनी धर्मपत्नी श्री अन्यीवाई (चौक का वरवाडा जिलासवाई माधोपुर) के साथ अपने सांसारिक सम्बन्ध स्थापित करते हुए २ दो पुत्ररत्न व १ पुत्री को जन्म दिया। जिनमें से बडे पुत्र का नाम श्री कल्याणवक्सजी तथा बछोटे पुत्रका नाम सुन्दरलालजी सा. और पुत्री का नाम सुन्दरबाई रखा । जो विवाहयोग्य होने पर देहली शादिकी थी। श्री सुन्दरलालजी का जन्म सं. १९३२ में हुवा था
और अपने बाल्यकाल में ही अलवर में श्री गोकुलचन्द्रजी सा. संचेती के यहां दत्तक पुत्र के रूप में सं १९५४ में आये थे। श्री गोकुलचन्द्रजी सा. एक बहुत ही धर्मप्रेमी सजन थे। और उन्होंने श्री सुन्दरलालजी का लग्न श्री उत्तमचन्दजी सा. तातेड की सुपुत्री श्री हुलासीबाई ग्राम चाटसू (जयपुर) के साथ किया था। युवावस्था में आप बहुत शौकीन तबीयत के थे। बाद में लालाजी चिरंजीलालजो पालावत के एवं साधु सन्तों के सम्पर्क में आने जाने से धर्मप्रवृत्ति की ओर विशेष झुकाव होने लगा और अणुव्रत आदि धारण करते हुवे त्यागवृत्ति की ओर प्रवृत्ति बढी और व्यापार में भी सदा सत्य बोलने का निश्चय किया। आप हमेशां एक ही भाव (रेट) ग्राहक को बतलाते थे और बस्तुकी जैसी परिस्थिति होती उसी रूप में बतला देते थे। और ग्राहक भी इनकी बातों पर विश्वास करते थे। आपका व्यापार श्री मांगीलालजी छोटेलालजी (दिगम्बर) जैन के साथ में था। एक समय की बात है कि उनके परिवार के श्री चन्दनमलजी संचेती के पुत्रवियोग होने पर दुकान की देखरेख करने का कार्य आपको सोंपा। एक ग्राहक ने छीट मांगी और ग्राहक को दुकान के दूसरे आदमीने पक्की बतलाकर देदी, आपने बीच में ही रोककर कहा लो या ना लो यह आपकी इच्छा उपर है परंतु यह छींट कच्ची हैं, पकी नहीं हैं। गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही उन्होंने एक दफा अपनी धर्मपत्नी से दीक्षा के भाव प्रगट किये, तब वे बोली कि मैं मौजूद हूं
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર