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तब तक तो दीक्षा नहीं लो। घर पर रहते हुए ही धर्मध्यान करो। तब उन्होंने ज्योतिष वगैरा से देखा कि इनकी आयु अधिक नहीं है
और उन्हों ने अन्तकाल के बाद दीक्षा लेने के भाव आपस में प्रकट कर दिये। कि मैं घर से देवलोक होजाने के बाद दीक्षा लूगा । और इतने दिन तक महीने में १७ दिन स्थानक में ही धर्मध्यान में व्यतीत करने और १३ दिन दुकान पर व्यापार के लिये जाऊंगा और रात्री को पूरे महीने ही नहीं जाऊंगा चौथे व्रत के सजोडे पञ्चक्खाण बहुत अरसे से लिये हुए थे अर्थात् शीलवत का खंद किया था। चौदस के चौदस यो पोषध करते थे, और हमेशा सुबह शाम के समय प्रतिक्रमण करते थे अर्थात् देव शी रायशी प्रतिक्रमण करते थे आप आयंबिल कई प्रकार से करते रहेते थे, इस प्रकार तपश्चर्या में दत्तचित्त रहने से लोग आपको “तपस्वीजी" कहने लगे। शास्त्रों में श्री उत्तराध्ययन व दशवैकालिक व पुच्छिणं, भक्तामर आदि स्वयं कण्ठस्थ याद किये थे थोकड़ों के भी बहुत जानकार थे, और सूत्रों का नियमानुसार सज्झाय करते थे और तपस्था भी आप असज्झाय का समय छोड कर दिनभर सज्झाय करते थे और कोई भी उनके सम्पर्क में आता तो धर्म चर्या का प्रसारण करते रहते थे। एक समय की घटना है कि जिस मोहल्ले (वीखल) में आप रहते थे उसके पास ही में एक ब्राह्मण के घर पर एक पक्षी आकर बैठा उसकोवैठा देख कर कहा कि आज इस मकान में किसी के द्वारा हत्या होना है और उसी दिन देखते हैं कि उन घर की ब्राह्मणी को उसके एक प्रेमी द्वारा कत्ल कर दिया गया है इसी प्रकार एक समय स्थानक में पोषध किये हुए कई श्रावक बैठे थे कि अचानक १ बिच्छ ने अंधेरे में श्रावक दीवान धन्नालाल जी को काट खाया
और वे बहुत ही दर्द से बैचेन हो रहेथे नवकार मंत्रादि से उन्हों ने उसका दर्द मिटा दिया, इस बात को देख कर मिलने वालो ने इस मंत्र को पूछा परन्तु सब को इन्कार कर दिया कि मेरा यह पेशा नहीं है वह पौषध में बैठे थे और उसमें अशातना होती। नक्षत्र व तारों का ज्ञान भी तपस्वी जी को बहुत था रात्री को आकाश की और देखकर समय व काल सही बतला देते थे, कि उनके इतने बजकर इतने मिनिट हुए हैं। इस तरह की बहुत सी घटनाएं तपस्वी जी की गृहस्थ जीवन की है।
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર