Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायाङ्गसूत्रे मिगसिर अद्दा पुस्सो तिणि य पुव्वा य मूलमस्सेसा । हत्थो चित्तो य तहा दस बुद्धिकराइं नाणस्स । अकम्मभूमियाणं मणुयाणं दसविहा रुक्खा उवभोगत्थाए उवत्थिया पण्णत्ता, तं जहा-मत्तंगयो य भिंगा तुडिअंगा दीर्व जोई चित्तंगा चित्तरसा मणिअंगा गेहागारा अनिगिणा य ॥सू० २८॥
___टीका-'दसविहे समणधम्मे' इत्यादि । दशविधः श्रमणधर्मः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-'खंती' शान्तिः निन्दादिश्रवणेऽपि क्रोधत्यागः, 'मुत्ती' मुक्तिः बाह्याभ्यन्तरवस्तुषु लीभपरित्यागः, 'अजवे' आर्जवम्=मायात्यागः । 'मद्दवे' मार्दवम् = मानपरित्यागः। 'लाघवे' लाघवम् द्रव्यतोऽल्पोपाधिता, भावतो गौरवत्यागः । 'सच्चे' सत्यम्-सत्यवादित्वम् । 'संजमे' संयममःमाणातिपातादि विरमणम् । 'तवे' तपः तपति दहति अष्टप्रकारकं कर्मेति तपः तपस्या। 'चियाए' त्यागः, संभोगिमुनिभ्यो भक्तादीनां दानम् । 'बंभवेरचासे' ब्रह्मचर्यवासः ब्रह्मचर्येणावस्थानम् । ___अब सूत्रकार दशवें समवाय को कहते हैं-'दसविहे' इत्यादि ।
टोकार्थ-दस प्रकार का श्रमणधमें कहा गया है । वह दश प्रकारता इस प्रकार से है क्षान्ति-अपनी निन्दा आदि के सुनने पर भी क्रोध का त्याग करना १, मुक्ति-बाह्य और आभ्यन्तर वस्तुओं पर से लोभ का परित्याग करना २, आजैव-माया का त्याग करना ३, मार्दव-मान का त्याग करना ४, लाघव-अल्प उपधि का रखना द्रव्य लाघव और गौरव का त्याग करना भावलाघव है । सत्य सत्यवचन बोलना ६, संयम-प्राणातिपाद आदि से विरत होना ७, तप-अष्ट प्रकार के कर्मों को जलाने वाली तपस्या करना ८, त्याग-संभोगिमुनियों को भक्तपान आदि देना ९, ब्रह्म
वे सूत्र २ शमां सभपायांनु ४थन ४३ छ-'दसविहे' इत्यादि । ટીકાર્ય–દસ પ્રકારના શ્રમધર્મ બતાવ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે--
(१) शान्ति पातांनी निन्हा माहिसinman छतi aunा त्याग ४२वी-(२) मुक्तिसारनी भने मातरि४ पस्तुमा प्रत्येन सामने। त्या॥४२॥ (3) आर्जव-भायाने त्याग ४२३। (४) मार्दव-मानना त्याग ४२व। (५) लाघव-याडी ५घि रामवी, ते द्रव्य साधq छ भने गौरवने त्या ४२वा त मासा छ. (६) सत्यसत्य मार (७) संयम-प्रातिपात माहिथी विरत २ (८) तप-मार प्र४।२i भाना क्षय ४२नारी तपस्या ४२वी.(e) त्याग-समाजी मुनियाने मतदान (माडा२पाणी) Bai (१०) ब्रह्मचर्यवास-ब्रह्मय धारए ४२९. वित्तसमाधिस्थान
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર