Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समवायानसूत्रे
छट्ठे अंगे) सा खलु अंगार्थतया पष्ठा अंगः - यह ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र अंग की अपेक्षा छठवां अंग है। (दो सुक्खंधा) द्वौ श्रुतस्कन्धौ - इसमें दो श्रुतस्कंध हैं। ( एगूणवीसं अज्झयणा) एकोनविंशतिरध्ययनानि - प्रथम श्रुतस्कंध में उन्निस अध्ययन हैं। (ते समासओ दुबिहा पण्णत्ता) तानि समासो द्विविधानि प्रज्ञप्तानि वे अध्ययन संक्षेप से दो प्रकार के हैं, (तं जहा ) तद्यथा - वे प्रकार ये है (चरिया य कप्पिया य) चारितानि कल्पितानि - उनमें चरित्र आदि रूप मेघकुमार आदि के सत्य उदाहरण है, कल्पित - भव्यजनों को प्रतिबोधित करने के निमित्त तुम्ब आदि के उदाहरणरूप [दसघम्मकहाणं वग्गा ] दशधर्मकथानां वर्गाः-धर्मकथा के दश वर्ग हैं, (तत्थणं) तत्र खलु ( एगमेगाए धम्मकहाए) एकैकस्यां धर्मकथायाम् - एक एक धर्मकथा में (पंच पंच प्रक्वाइयासयाई) पञ्च पञ्च आख्यायिकाशतानि - पांचसौ पांचसौ आख्यायिकाएँ हैं । ( एगमेगाए अक्खाइयाए) एकैकस्यामाख्यायिकायाम् - एक एक आख्यायिका में (पंच पंच उवक्खाइयासयाई) पञ्च पञ्च उपाख्यायिकाशतानि - पांचसौ पांचसौ उपाख्यायिका हैं । ( एगमेगाए उवक्वाइयाए) एकैकस्यां उपाख्यायिका नाम - एक एक उपाख्यायिका में (पंच पंच अक्खाइय उवक्खा इयसयाइ) छे ( से णं अगट्टयाए छट्ठे अंगे) सा खलु अगार्थतया षष्ठो अंग:- मंगनी अपेक्षाये मा ज्ञाताधर्भयांगसूत्र छ अंग है. (दो सुक्खंधा) द्वौ श्रुतस्कन्धौतेमां मे श्रुतस्ध छे, (एगूणवीसं अज्झयणा) एकोनविंशतिरध्ययनानिपहेला श्रुतस्म्धभां योगाशीस अध्ययन छे, (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) तानि समासतो द्विविधानि प्रज्ञप्तानि - ते अध्ययनो संक्षिप्तमा जे प्रारना छे, (तं जहा ) तद्यथा— ते प्रामा प्रमाणे छे - (चरिया य कप्पियाय) चरितानि कल्पितानि - तेमां यरित्र याहिय मेघकुमार माहिना सत्य बहारो छे, कल्पित-व्यवाने मोघ खापवाने भाटे तुंडा माहिना उहाहरणइय स्थित उहाहरणे पण छे. (दस धम्मकहाणं वग्गा) - दश धर्मकथानां वर्गा-धर्मथाना इस वर्ग छे. (तत्थणं) तत्र खलु - तेमां ( एगमेगाए धम्काए ) एकैकस्यां धर्मकथायां - प्रत्ये धर्माम (पंच पंच अक्खाइयासयाइं ) पञ्च पञ्च आख्यायिकाशतानि - पांयसे पांयसेो आध्यायि छे. (एग मेगाए अक्खा - इयाए) एकैकस्यामाख्यायिकायाम् - प्रत्येाम्यायामां (पंच पंच उवक्खाइयासयाइं ) पञ्च पञ्च उपाख्यायिका शतानि - पांयसेो, पांयसो उपाध्यायिथे । छे. ( एगमेगाए उबवखाइयाए ) एकैकस्यां उपाख्यायिकानाम् - प्रत्येक उपाया
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
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