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समवायाङ्गस्त्रे
आरब्धं यावत् अनुत्ताराणां भवधारणिया याक्त् तेषां रत्निः रत्निः परिहीयते इसी प्रकार सनत्कुमार देवों से लेकर अनुत्तर विमानवासी देवों तक के शरीर क्रमसे एक एक रत्नि (हाथ) की परिहानि (न्यूनता से ) जानना चाहिये | (आहारय सरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? ) आहारकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् - गौतमस्वामी श्री महावीर प्रभु से पूछते हैं कि हे भदंत आहारक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है (गोयमा ! एगाकारे पण्णत्ते) गौतम एकाकारं प्रज्ञप्तम् - उत्तर - हे गौतम ! आहारक शरीर एक प्रकार का कहा गया है । ( जइ एगाकारे प्रणते किं मणुस्स आहारसरीरे अमणुस्स - आहारय सरीरे ?) यदि एकाकारं प्रज्ञप्तं किं मनुष्याहारक शरीरं अमनुष्याहारक शरीरम् ? - यदि आहारक शरीर एक प्रकार का कहा गया है तो वह क्या मनुष्य का आहारक शरीर है या अमनुष्यका आहारक शरीर है ? (गोयमा ! मणुस्स आहारय सरीरे णो अमणुस्म आहार यसरी रे) गौतम ! मनुष्याहारक- शरीरम नो अमनुष्याहारकशरीरम्उत्तर - हे गौतम! मनुष्यका आहारक शरीर है, अमनुष्य का नहीं ( एवं जर मणुस्स आहारयसरीरे किं गन्भवकंतियमणुस्स आहारक सरीरे संमु च्छिम मणुस्स आहार यसरीरे ? ) एवं यदि मनुष्याहारक शरीरं किं गर्भएवं यावत् सनत्कुमारे आरब्धं यावत् अनुत्तराणां भवधारणिया यावत् तेषां रत्निः रत्निः परिहीयते - ४ प्रमाणे सनत्कुमारदेवाथी साधने अनुत्तर વિમાનાવાસી દેવે। સુધીનાં શરીર ક્રમશઃ એક એક રત્ન (હાથ) પ્રમાણ ન્યૂન છે ( आहारयसरीरेण भंते ! कइविहे पण्णत्ते ) आहारकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? –डे महंत ! आहार शरीर डेंटला પ્રકારના उद्यां छे ? ( गोयमा ! एगाकारे पण्णत्ते) गौतम ! एकाकारं प्रज्ञप्तम् - हे गौतम! भाडा २४ शरीर मे४ प्रहारनु धुं छे. (जइ एगाकारे पण्णत्ते किं मणुस्स आहारयसरीरे अमणुस्स आहार यसरीरे ?) यदि एकाकारं प्रज्ञप्तं किं मनुष्याहारकशरीर अमनुष्याहारकशरीरम् ? ने आहार शरीर मे प्रहार धुं छे तो ते मनुष्यनुं आह्वा२४ शरीर छे ! अमनुष्य आहार शरीर छे ? (गोयमा ! मस्स आहारयसरीरे णो अमणुस्स आहारयसरी रे) गौतम ! मनुष्याहा रकशरीरं नो अमनुष्याहारकशरीरम् - हे गौतम! मनुष्य आहार शरीर छे, अमनुष्यनु' नहीं (एवं जड़ मणुस्स आहारयसरीरे किं गन्भवकं नियमणुस्स आहारयसरीरे संमुच्छिममणुस्स आहारयसरीरे ?) एवं यदि मनुष्याहार - कशरीरं किं गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् संमूच्छिममनुष्याहारक
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
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