Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१०६८
समवायाङ्गसूत्रे
टीका- 'जंबुद्दीवे णं' इत्यादि - जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारतेवर्षे अस्यामवसपिण्यां चतुर्विंशस्तीर्थंकरा अभूवन् तद्यथा - - ऋषभः १, अजितः २, संभवः ३, वान् वासुपूज्य ने छह सो पुरुषों के साथ दीक्षा धारण की है। (उगाणं भोगाणं राइणाणं य खत्तियाणं य चउहिं सहस्सेहिं उसभो) उग्राणां भोगाणां राज्ञां च क्षत्रियाणां व चतुर्भिःसहस्रैः ऋषभः- उग्रवंश के भोगवंश के राजाओं और क्षत्रियों के चार ४ हजार परिवार के साथ ऋषभदेव ने दीक्षा धारण की हैं। (सेसाउ सहस्सपरिवार रा) शेषास्तु सहस्र परिवारैः - तथा इनसे अवरिष्ट जो तीर्थकर हैं उन्होंने एक एक १ - १ हजार परिवार के साथ दीक्षा धारण की हैं। (सुमइत्थ णिच्चभत्तेण णिग्गओ) सुमतिरत्र नित्यभक्तेन निर्गतः भगवान सुमतिनाथ ने विना उपवास के ही जिनदीक्षा धारण की है । ( वासुपूज्जच उत्थेणं) वासुपूज्यचतुर्थेन - वासुपूज्य भगवान् ने एक उपवास करके जिन दीक्षा धारण की है ( पासो मल्ली य अमेण) पाव मलिश्वाष्टमेन तथा पार्श्वनाथ भगवानने और मल्लिनाथ भगवान् दो उपवास करके (सेसाउ छट्ठेणं) शेषास्तु षष्ठेनअवशिष्ट तीर्थंकरों ने छट्ट की तपस्या करके जिनदीक्षा धारण की है। सू० १९८ ॥ टीकार्थ -- 'जंबुद्दीबेणं' इत्यादि जंबूद्वीप नामक द्वीप में भारत वर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकर हुए हैं। उनके नाम ये हैंदीक्षा ग्रहण उरी हती. (उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं य खत्तियाणं य चउहिं सहस्सेहिं उस भो ) उग्राणां भोगाणां राज्ञां च क्षत्रियाणां च चतुर्भिः सहस्रैः ऋषभः-- वंशना लोगवंशना रामयो भने क्षत्रियांना यार हुन्भरना परिवार सहित भगवान ऋषलहेवे द्वीक्षा सं गीअर उरी हुती. (सेसाउ सहस्सपरिवारा) शेषास्तु सहस्रपरिवारैः - ते सिवायना तीर्थो मे हर पुरुषो साथै दीक्षा सीधी हती. (सुमइत्थणिच्चभत्तेण णिग्गओ) सुमतिरत्र नित्यभक्तेन निर्गतः - लगवान सुभतिनाथे उपवास अर्या विना दीक्षा सीधी हती. ( वासुपूज चउत्थेणं) वासुपूज्यश्चतुर्थेन- भगवान वासुपूज्ये मे उपवास એક पुरीने दीक्षा ग्रहणु उरी हती, ( पासोमल्ली य अट्टमेणं) पार्श्वो मलिश्राष्टमेनपार्श्वनाथ लगवाने तथा भब्सिनाथ लगवाने अठ्ठम उरीने (सेसाउ छट्ठेणं) शेषास्तु षष्ठेन पाठीना तीर्थ पुरोयो छठुनी तपस्या છઠ્ઠની કરીને જિનદીક્ષા धारण पुरी हती. ॥ सू. १७८ ॥
टीडार्थ - 'जंबुद्दीवेणं दीवे' इत्यादि - ४ दीपन नामना द्वीपमां यावेसा ભારતવમાં આ અવસર્પિણી કાળમાં નીચે પ્રમાણે ૨૪ તીર્થંકર થયા છે-(૧)
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર