________________
भावबोधिनी टीका गुणनिर्देशपर्धकं बलदेववासुदेवनामनिरूपणम
११०१
है । (कडित्तगनीलपीयको सेज्जवाससा) कटिसूत्रक नीलपीतको शेयवाससः - इनके नील पीत रेशमीवस्त्र कणदोरे - करधनी से युक्त होते हैं । (पवरदित्ततेया) प्रवरदीप्ततेजसः -- इनका प्रवरतेज सदा दीप्त रहता है ( नरसीहा) नरसिंहा- ये मनुष्यों में सिंह जैसे रहा करते हैं (नरवई) नरपतयः- ये नरपति (नरिंदा ) नरेन्द्रा:- नरेन्द्र (नरवसहा ) नरनुषभाःऔर नरवृषभ कहलाते हैं । ( मरुयवसभकप्पा ) मरुद्वृषभकल्पाः - देवराज इन्द्र जैसे होते हैं। (अम्भहियरायतेयलच्छीए दिपमाणा) अभ्यधिक राजतेजो लक्ष्म्या दीप्यमानाः- ये राजलक्ष्मी के तेजसे बहुत अधिक दीपते रहते हैं। (नीलगपीयगवसणा) नीलकपीतकवसना:- ये जिनवस्त्रों को पहिरते हैं वे नीले और पीले होते हैं। [दुवे दुबे रामकेसवा भायरो] द्वौ द्वौ रामकेशवौ भ्रातरौ - " ऐसे ये दो दो राम और केशव आपस में भाई २ होते हैं" इस क्रम से नव वासुदेव और नव बलदेव होते हैं । [ तिहि जान कण्हे) त्रिपिष्ठो यावत् कृष्णः - त्रिपृष्ठ से लेकर कृष्णतक तो नौ वासुदेव हुए हैं [अपले जाव रामे यावि अपच्छिमे] अचलो यावद्रामचापि अपश्चिमः - अचल से लेकर रामतक नौ बलदेव हुए हैं ।। सू. २०७॥
नीलपीको सेज्जवाससा) कटिसूत्रक नील पीतकौशेयवाससः - तेमनां नीस, चीजां, रेशमी वस्त्रो ; होराथी युक्त होय छे. (पवरदित्ततेया) प्रवरदीप्ततेजसःतेथे। श्रेष्ठ प्रहारना सहा हेहीप्यमान तेक्वाणा होय छे. ( नरसीहा) नरसिंहाःતેએ માણસામાં સિંહ જેવા अजवान होय छे. (नरवई ) नरपतय: - : - तेभने नरपति, (नरिंदा) नरेन्द्राः - नरेन्द्र, (नरवसहा) नरवृषभाः - भने नरवृषल उहेबामां आवे छे. (मरुयवसभकप्पा ) मरुद् वृषभकल्पा:- तेथे देवरान छन्द्रना नेवा होय छे. (अमहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणा) अभ्यधिकराजतेजो लक्ष्म्या दीप्यमानाः- राज्यलक्ष्मीना तेन्थी तेथे अधिक हेहीप्यमान सागे छे. (नीलगपीयगवसणा) नीलकपीतकवसना:- तेथे नीस भने यीणां वखो धारे छे ( दुवेदुवे रामकेसवा भायरो) द्वौ द्वौ रामकेशवौ भ्रातरौ“ઉપશકત પ્રકારના રામ અને કેશવ એ બન્ને ભાઈઓ હોય છે. આ ક્રમ પ્રમાણે नव वासुदेव अने नव जगदेव थया छे. (तिविट्ठ जाव कण्हे) त्रिपृष्ठो यावत् कृष्णः - त्रिष्ठथी सधने कृष्ण सुधीना नव वासुदेवो थया छे (अयले जाव रामे यावि अपच्छिमे) अचलो यावद्रामचापि अपश्चिमः - भने अन्यणथी सर्धने રામ સુધીના નવ ખળદેવ થયા છે. ાસૂ. ૨૦૭૧ા
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
B