Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. समवायास्यगुणनिष्पन्ननामनिरूपणम्
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टीका--' इच्छेयं' इत्यादि - 'इच्चेयं' इत्येतत् शास्त्रम् ' एवं ' अनेन प्रकारेण वक्ष्यमाणानामभिः 'आहिज्जर' आख्यायते कथ्यते 'तं जहा' तद्यथा- 'कुलगरवंसेर य' कुलकरवंशेति च कुलकराणां वंशस्य प्रतिपादकत्वादयं 'कुलकर वंश' इति नाम्ना कथ्यते इति शब्दः स्वरूपप्रतिपादकः, च शब्दः समुच्चयार्थः,
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स्कंध ऐसा भी है । तथा समग्र जीव और अजीव आदि पदार्थों को यहां अभिधेयरूप मिलने के कारण इसका नाम समवाय ऐसा भी है एक आदि संख्याक्रम से पदार्थों का इसमें प्रतिपादन हुआ है इससे इसका नाम संख्या ऐसा भी है । (सम्मत्तमं गमक्खायं) : समस्तमङ्गमा ख्यातं - भगवान् इस समवायाङ्ग को संपूर्णरूप से कहा है । (अज्झयणं) अध्ययनमिति - यह एक ही अध्ययन है । (त्तिबे मि ) इति ब्रवीमि - जंबूस्वामी से सुधर्मास्वामी कहते हैं कि हे जंबू ! जैसा यह समवायाङ्ग सूत्र भगवान् से मैंने सुना है वैसा ही मैंने यह तुम से कहा है । अपनी तरफ से मैंने इस में कुछ भी घटाया वढाया नहीं है । "इति” यह शब्द शास्त्र की समाप्ति का बोधक है |मू० २१९||
टीकार्थ - 'इच्चेrयं एवमाहिजइ' इत्यादि यह शास्त्र इस प्रकार से इन नाम द्वारा कहा जाता है-वे नाम ये हैं- कुलकर वंश - इसशास्त्र में कुलकरों के वंश का प्रतिपादन हुआ है अतः उनके वंश का प्रतिपादक होने के कारण इस शास्त्र का नाम कुलकर वंश है। यहां इति शब्द स्वरूप का और "च" शब्द समुच्चय अर्थ का प्रतिपादक है । इसी तरह से नाम 'श्रुतस्कंध' | है. तथा समय कब मने अलव आहि पाथेना या सगभां समावेश थते। होवाथी तेनु' नाम 'समवाय' पशु छे. ये मे महि संख्यामथी चहार्थेनु या अंगमां प्रतिपादन १२वामां आव्यु होवाथी तेनुं नाम “संख्या" प। छ. (सम्मत्तमं गमकक्खायं) समस्तमङ्गमाख्यातम् - भगवानने या समवायांगने सौंपूर्ण ३पे ४हेस छे. (अज्झयणं) अध्ययनमिति तेमां मे ४ अध्ययन छे. (त्तिबे मि) इति ब्रवीमि सुधर्मास्वामी स्वामीने आहे छ ! हे ४५ ! ने अमो આ સમવાયાંગ સૂત્ર મેં ભગવાન પાસેથી સાંભળ્યું છે તે પ્રમાણે જ તમને તે કહું છું. મારી તરથી મેં તેમાં કંઇ પણ વધારા ઘટાડો કર્યાં નથી.” આ પદ શાસ્ત્રની સમાપ્તિનુ ખાધક છે. ાસૂ, ૨૧૯માં
" इति "
अर्थ - " इच्चेइय एवमाहिज्जइ" इत्यादि - भा शाखना આ પ્રમાણે જુદાં જુદાં નામે છે—કુલકરવંશ-આ શાસ્ત્રમાં કુલકરાના વંશનું પ્રતિપાદન કરાયુ' છે. તેથી તેમના વંશનુ' પ્રતિપાદક હોવાને કારણે આ શાસ્ત્રનું નામ ‘કુલકરવ’શ’ छे. ही 'इति' शम्ह स्व३पना भने 'च' शब्द समुय्यय अर्थनो प्रतियाह छे.
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર