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भावबोधिनी टीका. गणनिर्देशपूर्वकं बलदेववासुदेवनामनिरूपणम्
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होते हैं ( महारणविहाडगा ) महारणविघाटका :- अपने पराक्रम से ये भयंकर से भी भयंकर रण को छिन्न भिन्न कर डालते हैं । ( अद्वभर - हसामी) अर्द्ध भारतस्वामिनः- आधे भरतक्षेत्र के ये स्वामी होते हैं । (सोमा) सौम्या :- समस्त मनुष्यों को इनसे बडा सुख-आनंद मिलता हैं । ( रामकुल वसतिलया) राजकुलवंशतिलका:-राजवंश के तिलक समान थे । (अजिया) अजिताः - इन्हें कोई भी नहीं जीत सकता था । (जियरहा) इनके रथ पर कोई शत्रु कब्जा नहीं कर सकता था । (हलमुसलकणकपाणी) हलमुसलकणकपाणयः -- हल, मुसल और बाण इनके हाथों में रहा करते हैं । ( संखचक्कगयनंदणधरा) शङ्खचक्रगदानन्दकधराःशंख, चक्र, गदा और नन्दक - तलवार को ये धारण किये रहते थे (पवरुज्जलमुकंत विमलगोत्थुभतिरीडधारी) प्रवरोज्ज्वल शुक्लान्तविमलकीस्तूभतिरीटधारिणः - इनका स्वभाव श्रेष्ठ, देदीप्यमान, और शुभ्र अव यवों से युक्त कौस्तुभमणि को और मुकुट को धारण करने का होता है । (कुंडलउज्जोइयाणणा) कुण्डलोद्योतिताननाः - कुंडलों की चमक से इनका मुख सदा प्रकाशित रहता है। (पुडरीयणयणा) पुण्डरीकनयनाःइनके नेत्रकमल जैसे होते हैं। (एकावलिकण्ठलइयवच्छा) एकावलिकण्ठसमुद्भवाः - ते धा मानहान हुंटुमना होय छे. ( महारण विहाडगा) महारणविघाटका :- ते पोताना पराद्रुभथी लय अरमां लयं ४२ संग्रामने पशु છિન્નભિન્ન अ श छे (अद्धभरहसामी) अर्द्ध भारतस्वामिनः - तेथे अर्धा अश्तक्षेत्रना शासक होय छे. (सोमा) सौम्या - सौम्य होय हे सघजा सोओने सुमहाथी होय छे. (रायकुलवंसतिलया) राजकुलवंशतिलकाः- शांतिस समान हता (अजिया) अजिताः - तेथे अनेय हुता. ( अजियरहा) अर्धप। शत्रु तेमन! २थ मुफ्ने ११ शते नही. (हलमुसलकणकपाणी) हलमुसलकणक पाणयः- ते हस, भुसण भने भाराने पोताना हाथभां धारण ४२ता हवा, ( संखचक्कगयनंदणधरा ] शङ्खचक्रगदानन्दकधराः - तेथे शंभ, थ, ગદા भने तलपारने धारणु ५२ता हता. (पवरुज्जलसुकंत विमलगोत्थु भतिरीडधारी) प्रवरोज्ज्वलशुक्लान्तविमल कौस्तूभतिरीटधारिण:- ते श्रेष्ठ, हेहीप्यमान अने शुभ्र भैस्तूलमणिने तथा भुगटने धारण ४२ता हुता (कुंडलउज्जोइयाणणा) कुण्डलोद्योतिताननाः- मुंडोनी धुति (तेल) थी तेभनां वहन सहा प्राशित रहेतां तां (पुंडरीयणयणा) पुण्डरीकनयनाः - तेमनां नयन भ्रमण नेवां सुहर di ( एकावलिकण्हलइयवच्छा) एकावलिकण्ठलन वक्षसः तेभने सेरना
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર