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भावबोधिनी टीका. २४ तीर्थकराणां चैत्यवृक्षनामनिरूपणम्
१०७९ टीका-एएसिं' इत्यादि-एतेषां चतुर्विशतेस्तीर्थकराणां चतुविशतिश्चैत्यवृक्षा आसन् , तद्यथा-न्यग्ग्रोधः सप्तपर्णः शाल: प्रियकः प्रियङ्गः छत्राभः । शिरीषश्च नागक्षः माली च पिलक्षुक्षश्च ।३४।। तिन्दुकः पाटलो जम्बुरश्वत्थः खलु तथैव नित्यर्तुकोऽशोकोऽवच्छिन्नः सालवृक्षैः-समस्त ऋतुओ से वह युक्त था। शोकउपद्रव आदि से वह रहित था, तथा सालवृक्षों से वह घिरा हुआ था (तिण्णेव गाउयाई चेइयरुक्खो जिणस्स उसमस्स) त्रीण्येव गव्यूतानि चैत्यवृक्षो जिनस्य ऋषभस्य-ऋषभनाथ भगवान् का चैत्य वृक्ष तीनकोश का ऊँचा था। (सेसाणं पुणरुकरखा सरीरओ बारस गुणाउ) शेषाणं पुनर्वृक्षाः शरीरतो द्वादश गुणास्तु-अवशिष्ट तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष उनकी शरीर की ऊँचाई से बारह गुणी ऊँचाईवाले थे। (सच्छत्ता सपडागा सवेइया तोरणेहिं उववेया)सच्छन्त्राः सपताका सवेदिकास्तोरणैरुपपेता:-ये सब चैत्यक्ष छत्र सहित थे पताका सहितथे, वेदिकासहित थे, और तोरण सहित थे। (सुर असुर गरुल महिया चइयरुक्खा जिणवराणं) सुरासुरगरूडमहिताश्चैत्यवृक्षा जिनवराणाम-सुर, असुर और गरुल-सुपर्णकुमारों से ये सब जिनेन्द्रों के चैत्यवृक्ष सेवितथे ॥सू० २००॥ ___टीका-'एएसिचउव्वीसाए' इत्यादि इन चौवीस तीर्थंकरों के चौबीस
चैत्यक्ष थे। उनके नाम ये हैं-न्यग्रोध १, सप्तवर्ण २, शाल ३, प्रियक ४, प्रियंगु ५, छत्राभ ६, शिरीष ७, नागक्ष ८ माली ९, पिलङक्षुवृक्ष १० सालवृक्षः- समस्त ऋतुमाथी यु४त तु', 3-6454 माथी २डित तु भने सातवृक्षाथी धेशये तु (तिण्णेव गाउयाइ चेइयरुक्खो जिणस्स उसभस्स) त्रीण्येवगव्यूतानि चैत्यवृक्षो जिनस्य ऋषभस्य-पमदेव भगवाननु थत्यक्ष त्रए ।२५ यु तु. (सेसाणं पुणरुक्खा सरीरओ बारसगुणाउ) शेषाणं पुनर्वृक्षाः शरीरतो द्वादशगुणास्तु-मान तीर्थ ४३।नां यत्यक्ष तेमना शरी२नी SANS :२ता पा२ २४ी याni &ai. (सच्छत्ता सपडागा सवे. इया तोरणेहिं उववेया) सच्छत्राः सपताका सवेदिकास्तोरणैरुपपेताःते मां येत्या छत्र, पता, all मने तथा युत उता. (सुरअसुर गरुलमहिया चेइयरुक्खा जिणवराणं) सुरासुरगरुडमहिताश्चौत्यक्षा जिनवराणाम-तेमवार्थत्यक्षा सु२, मसुर, भने सुपए मारे। वारा सेवातidiuसू.२००॥
- 'एएसिं चउव्वीसाए' इत्यादि-ते योवीस ती नi यावीस चैत्यवृक्षा इतi. ते येत्यानi नाम या प्रमाणे छे–(१), न्योध, (२) सप', (3) स, (४) प्रिय४, (५) प्रिय, (६) छाल, (७) शिरीष, (८)
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર