Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. आयुर्बन्धस्वरूपनिरूपणम्
१०२३ जातिनामनिधत्तायु१ (गइनामनिहत्ताउए) गतिनामनिधत्तायुः-गतिनामनिधत्तायु२, (ठिइनामनिहत्ताउए) स्थितिनामनिधत्तायुः-स्थितिनामनिधत्तयु३, (पएस नामनिहत्ताउए) प्रदेशनामनिधत्तायुः-प्रदेशनामनिधत्तायु४. (अणुभागनामनिहत्ताउए) अनुभागनामनिधत्तायु:-अनुभागनामनिधत्तायु५,(ओगा हणा यामनिहत्ताउए) अवगाहना नामनिधत्तायुः अवगाहनामामनिधत्तायु६। (एवं जाय वेमाणियाणं) एवं यावद् वैमानिकानाम् इसी तरह से भवनपतिव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिक देवों में भी आयुबंध जानना चाहिये। (निरयगई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाए णं पण्णत्ता) निरयगतिः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन-प्रज्ञप्ता?-हे भदंत! नरकगति में कितने समयतक उपपात-नारकियों की उत्पत्ति का विरह रहता है। उत्तर-(गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं बारसमुहूत्ते) हे गौतम! जघन्यत एक समयमुत्कर्षतो द्वादश-मुहूर्तान्-हे गौतम! नरकगति में कम से कम एक समयतक और अधिक से अधिक बारह मुहूर्ततक उपपात का विरह रहता है। (एवं तिरियगई मणुस्सगई देवगई) एवं तिर्यग्गति मनुष्यगति देवगतिः-इसी तरह से तिर्यञ्चगति में, मनुष्यगति में और देवगति में भी उपपात का जघन्य और उत्कृष्टरूप से विरह जानना (गइनाम निहत्ताउए) गतिनाम निधत्तायुः-(२) गतिनाम निधत्तायु, (ठिइनाम निहत्ताउए)स्थितिनाम निधत्तायु:-(3) स्थितिनाम निधत्तायु, (पएसनाम निहताउए)मेदशनामनिधत्तायुः-(४) प्रशनाम नियत्तायु, (अणुभागनाम निहत्ताउए) अनुभागनामनिधत्तायु:-(५)मनुमनाम नियत्तायु,(ओगाहणानाम निहत्ताउए) अवगाहनानाम निधत्तायुः-अपना नाम नियत्तायु,(एवं जाव बेमाणियाणं)एवं यावत् वैमानिकानाम्-मेल प्रमाणे मनपति, व्यतर, ज्योति भने वैमाનિક દેવામાં પણ આયુબંધ સમજ.
प्रश्न-निरयगईणं भंते ! केवइयं कालं बिरहिया उवबाएणं पण्णत्ता-) निरयगतिः खलु भदन्त !कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ता? महत! નરકગતિમાં કેટલા સમય સુધી ઉપપાત-નારકીઓની ઉત્પત્તિને વિરહ રહે છે? उत्तर-(गोयमा!)जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं बारसमुहूत्ते)हे गौतम! जघन्यत एकं समयमुत्कर्षतो द्वादशमुहूर्तान-डे गौतम ! न२४गतिमा माछामा माछ। એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે બાર મુહૂર્ત સુધી ઉતપાતનો વિરહ રહે છે. (एवं, तिरियगई मणुस्सगई देवगई) एवं तियगूगतिर्मनुष्यगतिर्देवगतिःએ જ પ્રમાણે મનુષ્યગતિમાં, તિર્યો ચગતિમાં અને દેવગતિમાં પણ ઉપપાતને ઓછામાં ઓછે અને વધુમાં વધુ વિરહ સમજવો.
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર