Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भावबोधिनी टीका. संस्थानसंहननवेदादिस्वरूपनिरूपणम्
१०३७ गौतम षण्णां संहननानां असंहनिन:-हे गौतम ! छह संहननों में से इन असुरकुमार देवों के कोई भी संहनन नहीं होता है। ये तो असहननी होते हैं। (णेवट्ठि) नैवास्थि-इनके शरीर में न हड्डी होती है, (णेव छिरा) नैव शिराः-न शिराएँ होती हैं (णेव हारू) नैव स्नायु:-न स्नायुएँ होती हैं। (जे पोग्गला इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा-मणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति) ये पुद्गलाःइष्टाः कान्ताः प्रियाः मनोज्ञाः मन आमाः मनोऽभिरामाः ते तेषां असंहननतया परिणमन्ति-तथा जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मन आम, एवं मनोऽभिराम होते है वेही पुद्गल इनके अस्थ्यादि से रहित शरीरविशेषरूप से परिणमित होते हैं। (एवं जाव थणियकुमाराणं) एवं यावत् स्तनित-कुमाराणाम्-इसी तरह से स्तनितकुमार पर्यन्त जो भवनवासी देव हैं उनके विषय में भी कथन समजना चाहिये । (पुढवीकाइयाणं भंते ! संघयणी पण्णना) पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त किं संहनिनः प्रज्ञप्ताः--हे भदंत ! पृथ्वीकायिक जीव किस संहनन युक्त कहे गये हैं ? उत्तर--(गोयमा ! छेवट संघयणी पण्णता हे गौतम सेवात्तै संहननिनः प्रज्ञप्ताः--हे गौतम ! ये संहनन युक्त कहे गये हैं इनके सेवासंहनन होता है। (एवं असंघयणी)गौतम ! षण्णां संहननानां असंहनिनः-3 गौतम ! ते असुरમારદેવોને છ સંહનોમાંથી કોઈ પણ સંહનન હેતું નથી તેઓ અસંહનાનીसहनन २हित डाय छे. (णेवहि) नौवास्थि-तेमनां शरीरमा मस्थि तानथी. (णेव हारू) नैव स्नायुः-स्नायुमो दाता नथी, (णेव छिरा) नैव शिराःशिराम हाती नथी,(जे पोग्गला इट्टा कंता,पियामणुण्णा मणामामणाभिरामा ते ते सिं असंघयणत्ताए परिणमंति ) ये पुद्गलोः इष्टाः कान्ताः प्रियाः मनोज्ञाः मनामाः मनोऽभिरामाः ते तेषां असंहननतया परिणमन्तिતથા જે પુગલે ઈદ, કાન્ત, પ્રિય, મનેણ, મન આમ અને મને ભિરામ હોય છે એ પુદ્ગલે જ તેમના અસ્થિ આદિથી રહિત વિશિષ્ટ શરીરરૂપે પરિણમે છે. (एवं जाव थणियकुमाराणं) एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्-मेor प्रमाणेनु કથન સ્વનિતકુમાર સુધીના ભવનવાસી દેવાના વિષયમાં પણ સમજી લેવું. (पुढवीकाइयाणं भंते ! किं संघयणी पण्णता?) पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! किं संहनिनः प्रज्ञप्ताः- मत ! यि या सहननथी युक्त डाय छ ? उत्तर-(गोयमा ! छेवट संघयणी पण्णत्ता) गौतम! सेवात. संहननिन प्रज्ञप्ता'-गौतम! तेमने सेवासिनन डाय छे. मे शत तमा
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર